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"एक दिन चुक जाएगी ही बात / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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यह नियति--कवि की <br>
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--इतना कर सकूँ <br>
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जब तक चुकूँ! <br>
 
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09:44, 11 अप्रैल 2008 का अवतरण

बात है:
चुकती रहेगी
एक दिन चुक जाएगी ही—बात।
जब चुक चले तब
उस विन्दु पर
जो मैं बचूँ
(मैं बचूँगा ही!)
उस को मैं कहूँ—
इस मोह में अब और कब तक रहूँ?

चुक रहा हूँ मैं।
स्वयं जब चुक चलूँ
तब भी बच रहे जो बात—
(बात ही तो रहेगी!)
उसी को कहूँ:
यह सम्भावना—
यह नियति—कवि की
सहूँ।
उतना भर कहूँ,:
—इतना कर सकूँ
जब तक चुकूँ!