भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक दिन चुक जाएगी ही बात / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय }} बा...) |
छो |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
बात है: <br> | बात है: <br> | ||
चुकती रहेगी <br> | चुकती रहेगी <br> | ||
− | एक दिन चुक जाएगी | + | एक दिन चुक जाएगी ही—बात। <br> |
जब चुक चले तब <br> | जब चुक चले तब <br> | ||
− | उस विन्दु पर <br> | + | उस विन्दु पर <br> <!--- विन्दु ही है इसे बिन्दु न करें, विन्दु का मतलब भी यही होता है ---> |
जो मैं बचूँ <br> | जो मैं बचूँ <br> | ||
(मैं बचूँगा ही!) <br> | (मैं बचूँगा ही!) <br> | ||
− | उस को मैं | + | उस को मैं कहूँ— <br> |
इस मोह में अब और कब तक रहूँ? <br> <br> | इस मोह में अब और कब तक रहूँ? <br> <br> | ||
चुक रहा हूँ मैं। <br> | चुक रहा हूँ मैं। <br> | ||
स्वयं जब चुक चलूँ <br> | स्वयं जब चुक चलूँ <br> | ||
− | तब भी बच रहे जो | + | तब भी बच रहे जो बात— <br> |
(बात ही तो रहेगी!) <br> | (बात ही तो रहेगी!) <br> | ||
उसी को कहूँ: <br> | उसी को कहूँ: <br> | ||
− | यह | + | यह सम्भावना— <br> |
− | यह | + | यह नियति—कवि की <br> |
सहूँ। <br> | सहूँ। <br> | ||
उतना भर कहूँ,: <br> | उतना भर कहूँ,: <br> | ||
− | + | —इतना कर सकूँ <br> | |
जब तक चुकूँ! <br> | जब तक चुकूँ! <br> |
09:44, 11 अप्रैल 2008 का अवतरण
बात है:
चुकती रहेगी
एक दिन चुक जाएगी ही—बात।
जब चुक चले तब
उस विन्दु पर
जो मैं बचूँ
(मैं बचूँगा ही!)
उस को मैं कहूँ—
इस मोह में अब और कब तक रहूँ?
चुक रहा हूँ मैं।
स्वयं जब चुक चलूँ
तब भी बच रहे जो बात—
(बात ही तो रहेगी!)
उसी को कहूँ:
यह सम्भावना—
यह नियति—कवि की
सहूँ।
उतना भर कहूँ,:
—इतना कर सकूँ
जब तक चुकूँ!