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"कैदी और कोकिला / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

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क्या गाती हो?
 
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क्यों रह-रह जाती हो?
 
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कोकिल बोलो तो !
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क्या लाती हो?
 
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सन्देशा किसका है?
 
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ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
 
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डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
 
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जीने को देते नहीं पेट भर खाना,
 
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मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना !
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जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
 
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शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
 
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क्यों हूक पड़ी?
 
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वेदना-बोझ वाली-सी;
 
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अथवा स्वर है लोहे के दरवाजों का,
 
अथवा स्वर है लोहे के दरवाजों का,
 
बूटों का, या सन्त्री की आवाजों का,
 
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या  गिनने वाले करते हाहाकार ।
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या  गिनने वाले करते हाहाकार।
 
सारी रातें है-एक, दो, तीन, चार-!
 
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मेरे आँसू की भरीं उभय जब प्याली,
 
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बेसुर! मधुर क्यों गाने आई आली?
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क्या हुई बावली?
 
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अर्द्ध रात्रि को चीखी,
 
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कोकिल बोलो तो !
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किस दावानल की
 
किस दावानल की
 
ज्वालाएँ हैं दीखीं?
 
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कोकिल बोलो तो !
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निज मधुराई को कारागृह पर छाने,
 
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दीवार चीरकर अपना स्वर अजमाने,
 
दीवार चीरकर अपना स्वर अजमाने,
 
या लेने आई इन आँखों का पानी?
 
या लेने आई इन आँखों का पानी?
नभ के ये दीप बुझाने की है ठानी !
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नभ के ये दीप बुझाने की है ठानी!
 
खा अन्धकार करते वे जग रखवाली
 
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क्या उनकी शोभा तुझे न भाई आली?
 
क्या उनकी शोभा तुझे न भाई आली?
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तुम रवि-किरणों से खेल,
 
तुम रवि-किरणों से खेल,
 
जगत् को रोज जगाने वाली,
 
जगत् को रोज जगाने वाली,
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क्यों अर्द्ध रात्रि में विश्व
 
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जगाने आई हो? मतवाली
 
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तब सर्वनाश करती क्यों हो,
 
तब सर्वनाश करती क्यों हो,
 
तुम, जाने या बेजाने?
 
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कोकिल बोलो तो !
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क्यों तमोपत्र पत्र विवश हुई
 
क्यों तमोपत्र पत्र विवश हुई
 
लिखने चमकीली तानें?
 
लिखने चमकीली तानें?
कोकिल बोलो तो !
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क्या?-देख न सकती जंजीरों का गहना?
 
क्या?-देख न सकती जंजीरों का गहना?
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इस शान्त समय में,
 
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अन्धकार को बेध, रो रही क्यों हो?
 
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कोकिल बोलो तो !
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चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
 
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
 
इस भाँति बो रही क्यों हो?
 
इस भाँति बो रही क्यों हो?
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काली तू, रजनी भी काली,
 
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मेरी लोह-श्रृंखला काली,
 
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पहरे की हुंकृति की व्याली,
 
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तिस पर है गाली, ऐ आली !
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इस काले संकट-सागर पर
 
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मरने की, मदमाती !
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अपने चमकीले गीतों को
 
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क्योंकर हो तैराती !
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तेरे `माँगे हुए' न बैना,
 
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री, तू नहीं बन्दिनी मैना,
 
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न तू स्वर्ण-पिंजड़े की पाली,
 
न तू स्वर्ण-पिंजड़े की पाली,
तुझे न दाख खिलाये आली !
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तोता नहीं; नहीं तू तूती,
 
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तू स्वतन्त्र, बलि की गति कूती
 
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तेरा स्वर बस शंखनाद है।
 
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दीवारों के उस पार !
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या कि इस पार दे रही गूँजें?
 
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हृदय टटोलो तो !
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त्याग शुक्लता,
 
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तुझ काली को, आर्य-भारती पूजे,
 
तुझ काली को, आर्य-भारती पूजे,
कोकिल बोलो तो !
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तुझे मिली हरियाली डाली,
 
तुझे मिली हरियाली डाली,
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मेरा दस फुट का संसार!
 
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तेरे गीत कहावें वाह,
 
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रोना भी है मुझे गुनाह !
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देख विषमता तेरी मेरी,
 
देख विषमता तेरी मेरी,
बजा रही तिस पर रण-भेरी !
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इस हुंकृति पर,
 
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मोहन के व्रत पर,
 
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प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!
 
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फिर कुहू !---अरे क्या बन्द न होगा गाना?
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इस अंधकार में मधुराई दफनाना?
 
इस अंधकार में मधुराई दफनाना?
 
नभ सीख चुका है कमजोरों को खाना,
 
नभ सीख चुका है कमजोरों को खाना,
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और सवेरे हो जायेगा
 
और सवेरे हो जायेगा
 
उलट-पुलट जग सारा,
 
उलट-पुलट जग सारा,
कोकिल बोलो तो !
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कोकिल बोलो तो!
 
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03:52, 13 जून 2016 का अवतरण

क्या गाती हो?
क्यों रह-रह जाती हो?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो?
सन्देशा किसका है?
कोकिल बोलो तो!

ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ?

क्यों हूक पड़ी?
वेदना-बोझ वाली-सी;
कोकिल बोलो तो!

"क्या लुटा?
मृदुल वैभव की रखवाली सी;
कोकिल बोलो तो।"

बन्दी सोते हैं, है घर-घर श्वासों का
दिन के दुख का रोना है निश्वासों का,
अथवा स्वर है लोहे के दरवाजों का,
बूटों का, या सन्त्री की आवाजों का,
या गिनने वाले करते हाहाकार।
सारी रातें है-एक, दो, तीन, चार-!
मेरे आँसू की भरीं उभय जब प्याली,
बेसुरा! मधुर क्यों गाने आई आली?

क्या हुई बावली?
अर्द्ध रात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखीं?
कोकिल बोलो तो!

निज मधुराई को कारागृह पर छाने,
जी के घावों पर तरलामृत बरसाने,
या वायु-विटप-वल्लरी चीर, हठ ठाने
दीवार चीरकर अपना स्वर अजमाने,
या लेने आई इन आँखों का पानी?
नभ के ये दीप बुझाने की है ठानी!
खा अन्धकार करते वे जग रखवाली
क्या उनकी शोभा तुझे न भाई आली?

तुम रवि-किरणों से खेल,
जगत् को रोज जगाने वाली,
कोकिल बोलो तो!
क्यों अर्द्ध रात्रि में विश्व
जगाने आई हो? मतवाली
कोकिल बोलो तो !

दूबों के आँसू धोती रवि-किरनों पर,
मोती बिखराती विन्ध्या के झरनों पर,
ऊँचे उठने के व्रतधारी इस वन पर,
ब्रह्माण्ड कँपाती उस उद्दण्ड पवन पर,
तेरे मीठे गीतों का पूरा लेखा
मैंने प्रकाश में लिखा सजीला देखा।

तब सर्वनाश करती क्यों हो,
तुम, जाने या बेजाने?
कोकिल बोलो तो!
क्यों तमोपत्र पत्र विवश हुई
लिखने चमकीली तानें?
कोकिल बोलो तो!

क्या?-देख न सकती जंजीरों का गहना?
हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश-राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ? -जीवन की तान,
मिट्टी पर अँगुलियों ने लिक्खे गान?
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूआ।
दिन में कस्र्णा क्यों जगे, स्र्लानेवाली,
इसलिए रात में गजब ढा रही आली?

इस शान्त समय में,
अन्धकार को बेध, रो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!

काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली कमली काली,
मेरी लोह-श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की व्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!

इस काले संकट-सागर पर
मरने की, मदमाती!
कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती!
कोकिल बोलो तो!

तेरे `माँगे हुए' न बैना,
री, तू नहीं बन्दिनी मैना,
न तू स्वर्ण-पिंजड़े की पाली,
तुझे न दाख खिलाये आली!
तोता नहीं; नहीं तू तूती,
तू स्वतन्त्र, बलि की गति कूती
तब तू रण का ही प्रसाद है,
तेरा स्वर बस शंखनाद है।

दीवारों के उस पार!
या कि इस पार दे रही गूँजें?
हृदय टटोलो तो!
त्याग शुक्लता,
तुझ काली को, आर्य-भारती पूजे,
कोकिल बोलो तो!

तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली!
तेरा नभ भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी मेरी,
बजा रही तिस पर रण-भेरी!

इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ!
कोकिल बोलो तो!

फिर कुहू!---अरे क्या बन्द न होगा गाना?
इस अंधकार में मधुराई दफनाना?
नभ सीख चुका है कमजोरों को खाना,
क्यों बना रही अपने को उसका दाना?
फिर भी कस्र्णा-गाहक बन्दी सोते हैं,
स्वप्नों में स्मृतियों की श्वासें धोते हैं!
इन लोह-सीखचों की कठोर पाशों में
क्या भर देगी? बोलो निद्रित लाशों में?

क्या? घुस जायेगा स्र्दन
तुम्हारा नि:श्वासों के द्वारा,
कोकिल बोलो तो!
और सवेरे हो जायेगा
उलट-पुलट जग सारा,
कोकिल बोलो तो!