भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सब मालूम है मुझे / अर्चना कुमारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कुमारी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:18, 16 जून 2016 के समय का अवतरण

खूब समझती हूँ
चालाकियाँ
मक्कारी
मुझ पर ऊँगलियाँ उठाने वालों
गिनना स्याह अंधेरों में
गुनाह अपने
मेरा शफ्फाक दामन
तब भी दुआओं की सदा लेकर
रौशनी में लाएगा तुझे
ये गर्दिशों का दौर है
और तुफान जरा तेज
आँखों में भर गयी कोस भर की धूल
वक्त बीत रहा है परिचय का
धूँध के छँटते ही
मेरा साया नहीं होगा
बस धूप होगी
नीला आसमान होगा...!!