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"गीत 2 / सातवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी" के अवतरणों में अंतर
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हे अर्जुन, अब तत्त्व ज्ञान-विज्ञान, पूर्ण समझैवोॅ
जेकरा जानि, न कुछ जानै के जोग रहत, बतलैवोॅ।
ईश्वर निर्गुण निराकार छिक
हय रहस्य के जानोॅ,
एकरे नाम यथार्थ ज्ञान छिक
ईश्वर के पहचानोॅ,
सगुण और साकार रूप लीला के दरस करैवोॅ।
जब तों ईश्वर के समस्त
रूपोॅ के दर्शन पैवेॅ,
तब उपलब्धि मानि
आचरण से तोहें अपनैवेॅ,
अपना अन्दर विश्व ब्रह्म के प्रकटोॅ, जुगति बतैवोॅ।
एक हजारों में एक्के
हमरा लेॅ जतन करै छै,
एक हजार यतन वाला में
इक आचरण करै छै,
इक हजार आचरण युक्त में, तोरा सन नै पैवोॅ
हे अर्जुन, अब तत्त्व ज्ञान-विज्ञान, पूर्ण समझैवोॅ।