भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 10" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
<poem>
 
<poem>
 
दीवार चमकती महलों की,  
 
दीवार चमकती महलों की,  
मुख दिखलाई देता  था,
+
            मुख दिखलाई देता  था,
 
धन्य द्वारिका देखा जिसने,
 
धन्य द्वारिका देखा जिसने,
अदभुत  आनन्द लेता था |
+
          अदभुत  आनन्द लेता था |
 
सुन्दर सुन्दर कई बाग वहाँ,
 
सुन्दर सुन्दर कई बाग वहाँ,
और नगर चहुँ ओर रहे,  
+
            और नगर चहुँ ओर रहे,  
 
उनमें रंग बिरंगे खिलते,
 
उनमें रंग बिरंगे खिलते,
फूल फूल चित चोर रहे |
+
            फूल फूल चित चोर रहे |
 
तरह तरह के फल फूलों से,
 
तरह तरह के फल फूलों से,
बाग बगीचे सुन्दर थे,
+
              बाग बगीचे सुन्दर थे,
 
कुण्डों  में निर्मल  नीर भरा,
 
कुण्डों  में निर्मल  नीर भरा,
कई एक वहाँ पर मंदिर थे |
+
          कई एक वहाँ पर मंदिर थे |
 
तड़ाग बावली कुण्डों में,
 
तड़ाग बावली कुण्डों में,
था मोती समान स्वच्छ पानी,
+
          था साफ मधुर शीतल पानी,
 
आते देव सकल नहाने,
 
आते देव सकल नहाने,
वहाँ और कई ज्ञानी ध्यानी ।
+
          वहाँ और कई ज्ञानी ध्यानी ।
 +
आस पास वारिद की लहरें,
 +
            पानी की लहर निराली थी,
 +
हरे भरे सब वृक्ष खड़े,
 +
          वहाँ चहुँ ओर हरियाली थी |
 +
कहीं नहर नदी तालाब भरे,
 +
        कहीं कहीं पर झरना झरते थे,
 +
कोकिल शुक शिखी सारिका,
 +
            कहीं मीठे बैन उचरते थे |
 +
कहीं बाग भरा फूलों से था,
 +
          सरसब्ज छटा दिखलाती थी,
 +
कहीं अमोलक हंस हंसिनी,
 +
              कोयल गाना गाती थी |

21:02, 22 जून 2016 का अवतरण

दीवार चमकती महलों की,
             मुख दिखलाई देता था,
धन्य द्वारिका देखा जिसने,
           अदभुत आनन्द लेता था |
सुन्दर सुन्दर कई बाग वहाँ,
             और नगर चहुँ ओर रहे,
उनमें रंग बिरंगे खिलते,
             फूल फूल चित चोर रहे |
तरह तरह के फल फूलों से,
               बाग बगीचे सुन्दर थे,
कुण्डों में निर्मल नीर भरा,
           कई एक वहाँ पर मंदिर थे |
तड़ाग बावली कुण्डों में,
          था साफ मधुर शीतल पानी,
आते देव सकल नहाने,
           वहाँ और कई ज्ञानी ध्यानी ।
आस पास वारिद की लहरें,
            पानी की लहर निराली थी,
हरे भरे सब वृक्ष खड़े,
           वहाँ चहुँ ओर हरियाली थी |
कहीं नहर नदी तालाब भरे,
        कहीं कहीं पर झरना झरते थे,
कोकिल शुक शिखी सारिका,
            कहीं मीठे बैन उचरते थे |
कहीं बाग भरा फूलों से था,
          सरसब्ज छटा दिखलाती थी,
कहीं अमोलक हंस हंसिनी,
              कोयल गाना गाती थी |