"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 11" के अवतरणों में अंतर
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कहीं हो रहा हरि कीर्तन, | कहीं हो रहा हरि कीर्तन, | ||
− | कृष्ण कृष्ण गुण गाते थे, | + | कृष्ण कृष्ण गुण गाते थे, |
कहीं देवता ब्राह्मण पण्डित, | कहीं देवता ब्राह्मण पण्डित, | ||
− | गीता का रहस्य सुनते थे | | + | गीता का रहस्य सुनते थे | |
कहीं वेद ध्वनि सुन पड़ती थी, | कहीं वेद ध्वनि सुन पड़ती थी, | ||
− | कहीं मनहर साज सजाते थे, | + | कहीं मनहर साज सजाते थे, |
कहीं भक्त जय बोल बोलकर, | कहीं भक्त जय बोल बोलकर, | ||
− | आनन्द उर न समाते थे | | + | आनन्द उर न समाते थे | |
− | + | कहीं नारियां मंगल गा के, | |
− | + | अद्भुत दृश्य दिखाती थी, | |
− | + | बड़ी मनोहर वाणी उनकी, | |
− | + | कृष्ण कृष्ण गुन गाती थी | | |
− | + | कहीं मोर नाचते खुश होकर, | |
+ | कहीं सारस जोड़ा खड़ा हुआ, | ||
+ | कहीं स्वर्ण की सड़कें सुन्दर थी, | ||
+ | था हीरा पन्ना जड़ा हुआ | | ||
+ | जारी बारी और झरोखा, | ||
+ | अद्भुत महल दीखते थे, | ||
+ | उनमें रहने वाले प्रेमी, | ||
+ | पाठ प्रेम का सीखते थे | | ||
+ | हर घट भक्ति बिराज रही, | ||
+ | छाय रही हरि प्रेम घटा, | ||
+ | कोई आनन्द से कृष्ण कहे, | ||
+ | कोई बोले प्रभु हैं ऊँची अटा | | ||
+ | सभी सुखी जन रहते थे, | ||
+ | कौन करे वहाँ का वर्णन, | ||
+ | आनन्द अनोखा देख विप्र, | ||
+ | कहता था मुख से धन्य धन्य | | ||
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22:49, 23 जून 2016 के समय का अवतरण
कहीं हो रहा हरि कीर्तन,
कृष्ण कृष्ण गुण गाते थे,
कहीं देवता ब्राह्मण पण्डित,
गीता का रहस्य सुनते थे |
कहीं वेद ध्वनि सुन पड़ती थी,
कहीं मनहर साज सजाते थे,
कहीं भक्त जय बोल बोलकर,
आनन्द उर न समाते थे |
कहीं नारियां मंगल गा के,
अद्भुत दृश्य दिखाती थी,
बड़ी मनोहर वाणी उनकी,
कृष्ण कृष्ण गुन गाती थी |
कहीं मोर नाचते खुश होकर,
कहीं सारस जोड़ा खड़ा हुआ,
कहीं स्वर्ण की सड़कें सुन्दर थी,
था हीरा पन्ना जड़ा हुआ |
जारी बारी और झरोखा,
अद्भुत महल दीखते थे,
उनमें रहने वाले प्रेमी,
पाठ प्रेम का सीखते थे |
हर घट भक्ति बिराज रही,
छाय रही हरि प्रेम घटा,
कोई आनन्द से कृष्ण कहे,
कोई बोले प्रभु हैं ऊँची अटा |
सभी सुखी जन रहते थे,
कौन करे वहाँ का वर्णन,
आनन्द अनोखा देख विप्र,
कहता था मुख से धन्य धन्य |