भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 11" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
<poem>
 
<poem>
 
कहीं हो रहा हरि कीर्तन,  
 
कहीं हो रहा हरि कीर्तन,  
कृष्ण कृष्ण गुण गाते थे,     
+
              कृष्ण कृष्ण गुण गाते थे,     
 
कहीं देवता ब्राह्मण पण्डित,
 
कहीं देवता ब्राह्मण पण्डित,
गीता का रहस्य सुनते थे |
+
              गीता का रहस्य सुनते थे |
 
कहीं वेद ध्वनि सुन पड़ती थी,
 
कहीं वेद ध्वनि सुन पड़ती थी,
कहीं मनहर साज सजाते थे,
+
            कहीं मनहर साज सजाते थे,
 
कहीं भक्त जय बोल  बोलकर,
 
कहीं भक्त जय बोल  बोलकर,
आनन्द उर न समाते थे |
+
              आनन्द उर न समाते थे |
+
कहीं नारियां मंगल गा के,
 
+
              अद्भुत दृश्य दिखाती थी,
 
+
बड़ी मनोहर वाणी उनकी,
+
            कृष्ण कृष्ण गुन गाती थी |
 
+
कहीं मोर नाचते खुश होकर,
 +
            कहीं सारस जोड़ा खड़ा हुआ,
 +
कहीं स्वर्ण की सड़कें सुन्दर थी,
 +
              था हीरा पन्ना जड़ा हुआ |
 +
जारी बारी और झरोखा,
 +
              अद्भुत महल दीखते थे,
 +
उनमें रहने वाले प्रेमी,
 +
              पाठ प्रेम का सीखते थे |
 +
हर घट भक्ति बिराज रही,
 +
              छाय रही हरि प्रेम घटा,
 +
कोई आनन्द से कृष्ण कहे,
 +
          कोई बोले प्रभु हैं ऊँची अटा |
 +
सभी सुखी जन रहते थे,
 +
            कौन करे वहाँ का वर्णन,
 +
आनन्द अनोखा देख विप्र,
 +
      कहता था मुख से धन्य धन्य |
 
<poem>
 
<poem>

22:49, 23 जून 2016 के समय का अवतरण

कहीं हो रहा हरि कीर्तन,
               कृष्ण कृष्ण गुण गाते थे,
कहीं देवता ब्राह्मण पण्डित,
               गीता का रहस्य सुनते थे |
कहीं वेद ध्वनि सुन पड़ती थी,
             कहीं मनहर साज सजाते थे,
कहीं भक्त जय बोल बोलकर,
               आनन्द उर न समाते थे |
कहीं नारियां मंगल गा के,
              अद्भुत दृश्य दिखाती थी,
बड़ी मनोहर वाणी उनकी,
             कृष्ण कृष्ण गुन गाती थी |
कहीं मोर नाचते खुश होकर,
            कहीं सारस जोड़ा खड़ा हुआ,
कहीं स्वर्ण की सड़कें सुन्दर थी,
              था हीरा पन्ना जड़ा हुआ |
जारी बारी और झरोखा,
               अद्भुत महल दीखते थे,
उनमें रहने वाले प्रेमी,
               पाठ प्रेम का सीखते थे |
हर घट भक्ति बिराज रही,
               छाय रही हरि प्रेम घटा,
कोई आनन्द से कृष्ण कहे,
          कोई बोले प्रभु हैं ऊँची अटा |
सभी सुखी जन रहते थे,
             कौन करे वहाँ का वर्णन,
आनन्द अनोखा देख विप्र,
       कहता था मुख से धन्य धन्य |