भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वज़न/ जयप्रकाश मानस" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयप्रकाश मानस |संग्रह=होना ही चाहिए आंगन / जयप्रकाश मा...)
 
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
सूरज की चमक या हो
 
सूरज की चमक या हो
  
चंदा की चाँदनी
+
चंदा की चांदनी
  
 
पूरी भलमनसाहत
 
पूरी भलमनसाहत

18:38, 17 अप्रैल 2008 के समय का अवतरण

धरती का वैभव उँचाई आकाश की

सूरज की चमक या हो

चंदा की चांदनी

पूरी भलमनसाहत

सारा-का-सारा पुण्य

समूची पृथ्वी पलड़े में

चाहे रख दो सावजी

डोलेगा नहीं काँटा

रत्ती भर

किसी ने रख दिया है चुपके से

रत्ती भर प्रेम दूसरे पलड़े में