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"कुछ बचे या न बचे / जयप्रकाश मानस" के अवतरणों में अंतर
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* डॉ. बल्देव हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी के वरिष्ठ समीक्षक एवं कवि हैं जिन्होंने छायावाद के संस्थापक कवि श्री मुकुटधर पांडेय की प्रतिष्ठा के लिए लगातार कार्य किया है । | * डॉ. बल्देव हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी के वरिष्ठ समीक्षक एवं कवि हैं जिन्होंने छायावाद के संस्थापक कवि श्री मुकुटधर पांडेय की प्रतिष्ठा के लिए लगातार कार्य किया है । |
19:53, 3 मार्च 2008 का अवतरण
(डॉ. बलदेव के लिए*)
सँभाल कर रखना होगा
माँदल की थाप
दुखों को रौंदते घुंघरुओं की थिरकन
चाँदनी बिखेरती
सदियों पुरानी रागिनियों का रसपान करती
रात की ढलान
दूर-दूर पहाड़ियों पर
मेमनों के लिए बची-खुची
घास का अहसास कराती हरियाली
दुनिया को जगमगाते ओस
मौमाखियों के छत्ते
डगाल पर आँधियों से बचे
लटकते घोंसले में चूजों को
दाना चगाती बया
खेत पर रतजगे के अलाव के लिए
हरखू की चकमक
ऐपन ढारती नई बहू
अपने हिस्से के काम जैसे
पुरखों की वाचिक परम्परा में कोई आत्मकथा
कुछ सँभले या न सँभले
कुछ बचे या न बचे
टूटता-बिखरता ढाई आखर जरूर सम्हले
धूप-छाँही रंग में
सँभाल रखना ही है
फिर-फिर उजड़ने के बाद भी
बसती हुई दुनिया को
- डॉ. बल्देव हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी के वरिष्ठ समीक्षक एवं कवि हैं जिन्होंने छायावाद के संस्थापक कवि श्री मुकुटधर पांडेय की प्रतिष्ठा के लिए लगातार कार्य किया है ।