भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सम्बत / पतझड़ / श्रीउमेश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीउमेश |अनुवादक= |संग्रह=पतझड़ /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
03:15, 2 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
बाँस बड़ेरी, लकड़ी-काठी, गोइठा ढेर लगैलेॅ छै।
कुछु माँगी चाँगी लानलेॅ छै, बाकी काठ चोरैलेॅ छै॥
यै डेढ़िया पर सम्बत जरतै गैतै जोरोॅ सें गारी।
बिरना फुकतेॅ आगिन, आरु देतै ई सम्बत जारी॥
राग-रंग के ढंग बदललै, आबेॅ नै छै होली-फाग।
हहरी-हहरी सम्बत जरलै, साल तमामी लेखा लाग॥