भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"है अजीब शहर की ज़िंदगी / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
ये ज़रूरतों का ख़ुलूस है, या मुतालबों का सलाम है | ये ज़रूरतों का ख़ुलूस है, या मुतालबों का सलाम है | ||
− | यूँ ही रोज़ मिलने | + | यूँ ही रोज़ मिलने की आरज़ू बड़ी रख रखाव की गुफ्तगू |
ये शराफ़ातें नहीं बे ग़रज़ उसे आपसे कोई काम है | ये शराफ़ातें नहीं बे ग़रज़ उसे आपसे कोई काम है | ||
− | वो दिलों में आग लगायेगा मैं दिलों | + | वो दिलों में आग लगायेगा मैं दिलों की आग बुझाऊंगा |
उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है | उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है | ||
− | न उदास हो | + | न उदास हो न मलाल कर, किसी बात का न ख़याल कर |
− | कई साल बाद मिले है हम, तिरे नाम आज | + | कई साल बाद मिले है हम, तिरे नाम आज की शाम है |
− | कोई नग्मा | + | कोई नग्मा धूप के गॉँव सा, कोई नग़मा शाम की छाँव सा |
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है | ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है | ||
</poem> | </poem> |
03:08, 4 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
है अजीब शहर कि ज़िंदगी, न सफ़र रहा न क़याम है
कहीं कारोबार सी दोपहर, कहीं बदमिज़ाज सी शाम है
कहाँ अब दुआओं कि बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें
ये ज़रूरतों का ख़ुलूस है, या मुतालबों का सलाम है
यूँ ही रोज़ मिलने की आरज़ू बड़ी रख रखाव की गुफ्तगू
ये शराफ़ातें नहीं बे ग़रज़ उसे आपसे कोई काम है
वो दिलों में आग लगायेगा मैं दिलों की आग बुझाऊंगा
उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है
न उदास हो न मलाल कर, किसी बात का न ख़याल कर
कई साल बाद मिले है हम, तिरे नाम आज की शाम है
कोई नग्मा धूप के गॉँव सा, कोई नग़मा शाम की छाँव सा
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है