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"बौनों के शहर में / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

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02:47, 15 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

और आखिर उतर आयी रात
बौनों के शहर में

सुबह से
मीनार में दिन
सीढ़ियों पर चढ़ रहे थे
एक टूटे आयने में
अक्स अपने पढ़ रहे थे

सुन रहे थे गुंबजों की बात
बौनों के शहर में

मुट्ठियों में
धूप के नुस्खे दबोचे
सब मिले थे
फूल की पगडंडियों पर
पतझरों के सिलसिले थे

हो रही थी धूप की बरसात
बौनों के शहर में

एक बहती है नदी
गुमसुम
हवाएँ चुप खड़ी हैं
बत्तियों के तले
अंधे कुएँ
गहरी बावड़ी है

डूबते जिसमें सभी हर रात
बौनों के शहर में