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"मधुशाला / भाग 1 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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फेनू जग परसादी पैतै;
 
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सबसें पहिलें तोरोॅ स्वागत
 
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हमरोॅ करै ई मधुशाला।१
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प्यास बुझेॅ, तेॅ विश्व तपाय केॅ
 
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ऊपर कहिये वारी देलौं,
 
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आय निछावर करबै तोरा
 
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पर जग केरोॅ मधुशाला।२
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प्रीतम, तों हमरोॅ हाला तेॅ
 
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मस्त तोहें पीवी हमरा,
 
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इक दूसरा केॅ हम्में दोनों
 
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आय परस्पर मधुशाला।३
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भावुकता अंगूर लतोॅ सें
 
भावुकता अंगूर लतोॅ सें
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लाख पीयौ, दू लाख पीयौ !
 
लाख पीयौ, दू लाख पीयौ !
 
पाठक छेकै पीयैवाला
 
पाठक छेकै पीयैवाला
पुस्तक हमरोॅ मधुशाला।४
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मधुर भावना केरोॅ सुमधुर
 
मधुर भावना केरोॅ सुमधुर
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ओकरा आपने पीवी जाँव;
 
ओकरा आपने पीवी जाँव;
 
अपनै में हम्में छी साकी
 
अपनै में हम्में छी साकी
पीयौवाला, मधुशाला।५
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जाय लेली मदिरालय घर सें
 
जाय लेली मदिरालय घर सें
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हम्में ई बतलाबै छी-
 
हम्में ई बतलाबै छी-
 
‘पथ पकड़ी केॅ चल्ले चल तों
 
‘पथ पकड़ी केॅ चल्ले चल तों
पावी लेबे मधुशाला’।६
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पावी लेबे मधुशाला’।6
 
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08:13, 29 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

मीट्ठोॅ भाव रोॅ अंगूरोॅ के
आय करी ऐलौं हाला,
प्रीतम, अपने ठो हाथोॅ सें
आय पिलैबौं ऊ प्याला;
पहिलें भोग लगाय लौं तोरा
फेनू जग परसादी पैतै;
सबसें पहिलें तोरोॅ स्वागत
हमरोॅ करै ई मधुशाला।1

प्यास बुझेॅ, तेॅ विश्व तपाय केॅ
जाय चुऐबै सब हाला,
एक गोड़ोॅ पर साकी बनलेॅ
नाँची उठबै लै प्याला;
जिनगी रोॅ मधुरी तेॅ तोरोॅ
ऊपर कहिये वारी देलौं,
आय निछावर करबै तोरा
पर जग केरोॅ मधुशाला।2

प्रीतम, तों हमरोॅ हाला तेॅ
तोरोॅ छी प्यासा प्याला,
अपना केॅ हमरा में भरी केॅ
बनौ उठोॅ पीयैवाला;
हम्में छलकौं तोरा छकी केॅ
मस्त तोहें पीवी हमरा,
इक दूसरा केॅ हम्में दोनों
आय परस्पर मधुशाला।3

भावुकता अंगूर लतोॅ सें
खिची कल्पना रोॅ हाला,
कवि साकी बनलोॅ ऐलोॅ छै
भरी केॅ कविता रोॅ प्याला;
कभी नै कण भर खाली होतै
लाख पीयौ, दू लाख पीयौ !
पाठक छेकै पीयैवाला
पुस्तक हमरोॅ मधुशाला।4

मधुर भावना केरोॅ सुमधुर
रोज बनाबै छी हाला,
ई मधु सें ही भरौं आपनोॅ
अन्तर रोॅ प्यासा प्याला;
धरी कल्पना रोॅ हाथोॅ सें
ओकरा आपने पीवी जाँव;
अपनै में हम्में छी साकी
पीयौवाला, मधुशाला।5

जाय लेली मदिरालय घर सें
निकलै छै पीयैवाला,
अनभुवार रं पथ खोजै में
ही छै ऊ भोलाभाला;
अलग-अलग पथ बतलाबै सब
हम्में ई बतलाबै छी-
‘पथ पकड़ी केॅ चल्ले चल तों
पावी लेबे मधुशाला’।6