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"छैला छाय रहे मधुबन में (कजली) / खड़ी बोली" के अवतरणों में अंतर

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18:40, 13 जुलाई 2008 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

छैला छाय रहे मधुबन में सावन सुरत बिसारे मोर।

मोर शोर बरजोर मचावै, देखि घटा घनघोर।।

कोकिल शुक सारिका पपीहा, दादुर धुनि चहुंओर।

झूलत ललिता लता तरु पर, पवन चलत झकझोर।।

ताखि निकुंज सुनो सुधि आवै श्याम संवलिया तोर।

विरह विकल बलदेव रैन दिन बिनु चितये चितचोर।।


("कजली कौमुदी" से जिसके संग्रहकर्ता थे श्री कमलनाथ अग्रवाल)

('कविता कोश' में 'संगीत'(सम्पादक-काका हाथरसी) नामक पत्रिका के जुलाई 1945 के अंक से)