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"ये हक़ीक़त या ख़्वाब है कोई / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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यह हक़ीक़त कि ख़्वाब है कोई
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सामने बेनक़ाब है कोई
  
ये हक़ीक़त या ख़्वाब है कोई
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है तसव्वुर में हुस्ने दोशीज़ा
सामने बेनक़ाब है कोई  
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या पुरानी शराब है कोई  
  
उसकी मदहोश कुन नज़र है या
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भेजना कर के सैकड़ों पुर्ज़े
मदभरी सी शराब है कोई  
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ख़त का यह भी जवाब है कोई
  
प्यार नज़रों से छलका पड़ता है  
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ज़िन्दगी क़ैद-ए-बामशक़्क़त है
इस अदा का जवाब है कोई  
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इससे बढ़कर अज़ाब है कोई  
  
जानलेवा तेरी अदाओं से
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बन्दगी में तेरी किफ़ायत क्यों
बहका बहका जनाब है कोई
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वक़्त से पहले ही संभल जाए
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करता आदत ख़राब है कोई
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जिससे नीयत ख़राब हो जाए
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लाता ऐसा शबाब है कोई
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मुझको लगता नहीं है ऐ ख़ालिक़
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रहमतों का हिसाब है कोई  
 
रहमतों का हिसाब है कोई  
 
मेरे ख़त के जवाब में गाली
 
यार ये भी जवाब है कोई
 
  
 
चाँद पर छाये ऐसे बादल हैं  
 
चाँद पर छाये ऐसे बादल हैं  
रुख़ पे जैसे नक़ाब है कोई
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रुख़ पे जैसे नक़ाब है कोई
 
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ज़िन्दगी क़ैद-ए-बा मशक्कत है
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इससे बढ़कर अज़ाब है कोई
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शर्म से पलकें झुकती जाती हैं
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आँख में भी हिजाब है कोई
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बन्दगी में तेरी किफायत क्यों
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रहमतों का हिसाब है कोई
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एक मुफलिस की लूटना इज़्ज़त
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इससे बढ़कर अज़ाब है कोई
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जिसकी मन्नत न हो यहाँ पूरी
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ऐसा क़िस्मत खराब है कोई
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रोल्स रायस में कचरा ढ़ोता था
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देखा ऐसा नवाब है कोई  
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जिसको देखो 'रक़ीब' पढ़ता है
 
जिसको देखो 'रक़ीब' पढ़ता है
जैसे चेहरा किताब है कोई  
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जैसे चेहरा किताब है कोई
 
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03:25, 2 अगस्त 2016 का अवतरण

यह हक़ीक़त कि ख़्वाब है कोई
सामने बेनक़ाब है कोई

है तसव्वुर में हुस्ने दोशीज़ा
या पुरानी शराब है कोई

भेजना कर के सैकड़ों पुर्ज़े
ख़त का यह भी जवाब है कोई

ज़िन्दगी क़ैद-ए-बामशक़्क़त है
इससे बढ़कर अज़ाब है कोई

बन्दगी में तेरी किफ़ायत क्यों
रहमतों का हिसाब है कोई

चाँद पर छाये ऐसे बादल हैं
रुख़ पे जैसे नक़ाब है कोई

जिसको देखो 'रक़ीब' पढ़ता है
जैसे चेहरा किताब है कोई