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"ये हक़ीक़त या ख़्वाब है कोई / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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+ | सामने बेनक़ाब है कोई | ||
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− | + | या पुरानी शराब है कोई | |
− | + | भेजना कर के सैकड़ों पुर्ज़े | |
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− | + | ज़िन्दगी क़ैद-ए-बामशक़्क़त है | |
− | + | इससे बढ़कर अज़ाब है कोई | |
− | + | बन्दगी में तेरी किफ़ायत क्यों | |
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चाँद पर छाये ऐसे बादल हैं | चाँद पर छाये ऐसे बादल हैं | ||
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− | जैसे चेहरा किताब है कोई | + | जैसे चेहरा किताब है कोई |
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03:25, 2 अगस्त 2016 का अवतरण
यह हक़ीक़त कि ख़्वाब है कोई
सामने बेनक़ाब है कोई
है तसव्वुर में हुस्ने दोशीज़ा
या पुरानी शराब है कोई
भेजना कर के सैकड़ों पुर्ज़े
ख़त का यह भी जवाब है कोई
ज़िन्दगी क़ैद-ए-बामशक़्क़त है
इससे बढ़कर अज़ाब है कोई
बन्दगी में तेरी किफ़ायत क्यों
रहमतों का हिसाब है कोई
चाँद पर छाये ऐसे बादल हैं
रुख़ पे जैसे नक़ाब है कोई
जिसको देखो 'रक़ीब' पढ़ता है
जैसे चेहरा किताब है कोई