भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आज माहौल दुनिया का खूंरेज़ है / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
 
आज माहौल दुनिया का खूँरेज़ है  
 
आज माहौल दुनिया का खूँरेज़ है  
है हलाकू कोई, कोइ चंगेज़ है  
+
है हलाकू कोई, कोई चंगेज़ है  
 
   
 
   
गैर के रंग में, रंग गए लोग सब
+
गैर के रंग में, रंग गए लोग कुछ
आज हर भारती, लगता अँगरेज़ है  
+
रूह में बस गया जिनके अँगरेज़ है  
 
   
 
   
 
गौर से देखिये गुलशने हुस्न की
 
गौर से देखिये गुलशने हुस्न की
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
रंगरेज़ी पे आमादा रंगरेज़ है  
 
रंगरेज़ी पे आमादा रंगरेज़ है  
 
   
 
   
वक़्त है कर ले तौबा ख़ुदा से 'रक़ीब'  
+
वक़्त है कर ले तौबा ख़ुदा से 'रक़ीब'  
सागरे ज़िंदगी तेरा लबरेज़ है      
+
साग़रे ज़िंदगी तेरा लबरेज़ है
 
</poem>
 
</poem>

05:21, 6 अगस्त 2016 के समय का अवतरण

आज माहौल दुनिया का खूँरेज़ है
है हलाकू कोई, कोई चंगेज़ है
 
गैर के रंग में, रंग गए लोग कुछ
रूह में बस गया जिनके अँगरेज़ है
 
गौर से देखिये गुलशने हुस्न की
"हर कली खूबसूरत है नौखेज़ है"
 
मुस्कुरा कर सहेली ने उस से कहा
उड़ न जाए दुपट्टा हवा तेज़ है
 
उम्र भर जो रहे देखते आइना
आइने से उन्हें आज परहेज़ है
 
डर है दुनिया का नक्शा न बदले कहीं
रंगरेज़ी पे आमादा रंगरेज़ है
 
वक़्त है कर ले तौबा ख़ुदा से 'रक़ीब'
साग़रे ज़िंदगी तेरा लबरेज़ है