भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अधर / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:07, 20 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
मन्द महा मधु माधुरी कन्द,
नवात न वात की आवै विचार मैं।
ईख न लोची नहीं सरदा,
नहिं जामुन सेब कै तूत हजार मैं॥
चूसि लह्यो रसना घन प्रेम,
जो वा मधुराधर के सुधासार मैं।
सो रस के रस को नहिं लेसहु,
पाइए आम अँगूर अनार मैं॥