"भीष्म-प्रतिज्ञा (फाग) / रामराज" के अवतरणों में अंतर
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टेक- राउर प्रण आज रहे ना, गंगे-सुत कह्यौ पुकारी | टेक- राउर प्रण आज रहे ना, गंगे-सुत कह्यौ पुकारी | ||
− | हो गिरिवर | + | हो गिरिवर धारी॥ |
सनमुख आज समर के सागर, रण सूरमा वीर भटनागर | सनमुख आज समर के सागर, रण सूरमा वीर भटनागर | ||
− | बडे बडे | + | बडे बडे बलधारी॥ |
− | द्रुपद विराट सात्यकी पारथ , सबकै बल कई देब | + | द्रुपद विराट सात्यकी पारथ , सबकै बल कई देब अकारथ॥ |
विचलित करि पांडव सेना, पल में दल देब बिदारी | विचलित करि पांडव सेना, पल में दल देब बिदारी | ||
− | हो गिरिवर | + | हो गिरिवर धारी॥ |
तीनौ लोक तुम्हातर सहायक, बन्यौल आज जौ जदुकुल नायक | तीनौ लोक तुम्हातर सहायक, बन्यौल आज जौ जदुकुल नायक | ||
− | तबौ पीतांबर | + | तबौ पीतांबर धारी॥ |
− | बाणन मारि विकल कइ देबै, रण आंगन मा नाच | + | बाणन मारि विकल कइ देबै, रण आंगन मा नाच नचैबै॥ |
बचिहौ बिन अस्त्र गहै ना, सांची यह टेक हमारी | बचिहौ बिन अस्त्र गहै ना, सांची यह टेक हमारी | ||
− | हो गिरिवर | + | हो गिरिवर धारी॥ |
कि तौ आज कायर बनि जइहौ, रण से भागि पीठ दिखलइहौ | कि तौ आज कायर बनि जइहौ, रण से भागि पीठ दिखलइहौ | ||
− | अर्जुन सहित | + | अर्जुन सहित मुरारी॥ |
− | कि तौ चक्र गहि कै नारायण, रथ से उतररि पयादे | + | कि तौ चक्र गहि कै नारायण, रथ से उतररि पयादे पायन॥ |
धइहौ जब सहत बने ना, भीषम कै चोट करारी | धइहौ जब सहत बने ना, भीषम कै चोट करारी | ||
− | हो गिरिवर | + | हो गिरिवर धारी॥ |
जौ एतना कई कै न देखावौं, तौ शान्तीनु कै सुत न कहावौं | जौ एतना कई कै न देखावौं, तौ शान्तीनु कै सुत न कहावौं | ||
− | बनौं नरक | + | बनौं नरक अधिकारी॥ |
− | ‘रामराज’ सम्हरेव जगतारन , अस कहि लगे कठिन सर | + | ‘रामराज’ सम्हरेव जगतारन, अस कहि लगे कठिन सर मारन॥ |
देवन्ह उर धीर धरैं ना, कम्पित सुनि वसुधा सारी | देवन्ह उर धीर धरैं ना, कम्पित सुनि वसुधा सारी | ||
− | हो गिरिवर | + | हो गिरिवर धारी॥ |
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10:05, 22 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
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टेक- राउर प्रण आज रहे ना, गंगे-सुत कह्यौ पुकारी
हो गिरिवर धारी॥
सनमुख आज समर के सागर, रण सूरमा वीर भटनागर
बडे बडे बलधारी॥
द्रुपद विराट सात्यकी पारथ , सबकै बल कई देब अकारथ॥
विचलित करि पांडव सेना, पल में दल देब बिदारी
हो गिरिवर धारी॥
तीनौ लोक तुम्हातर सहायक, बन्यौल आज जौ जदुकुल नायक
तबौ पीतांबर धारी॥
बाणन मारि विकल कइ देबै, रण आंगन मा नाच नचैबै॥
बचिहौ बिन अस्त्र गहै ना, सांची यह टेक हमारी
हो गिरिवर धारी॥
कि तौ आज कायर बनि जइहौ, रण से भागि पीठ दिखलइहौ
अर्जुन सहित मुरारी॥
कि तौ चक्र गहि कै नारायण, रथ से उतररि पयादे पायन॥
धइहौ जब सहत बने ना, भीषम कै चोट करारी
हो गिरिवर धारी॥
जौ एतना कई कै न देखावौं, तौ शान्तीनु कै सुत न कहावौं
बनौं नरक अधिकारी॥
‘रामराज’ सम्हरेव जगतारन, अस कहि लगे कठिन सर मारन॥
देवन्ह उर धीर धरैं ना, कम्पित सुनि वसुधा सारी
हो गिरिवर धारी॥