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हा दत्तापुर रह्यो गाँव जो देस उजागर।
गमनागमन मनुज समूह जित रहत निरंतर॥८४॥
जिनके आवत जात परे पथ चारहुँ ओरन।
देत बताय पथिक अनजानेहुँ भूले भोरन॥८५॥
सो न जानि अब परै कहाँ किहि ओर अहै वह।
जानेहुँ चीन्हि परै न कैसहूँ अहै वहै यह॥८६॥