भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"टे बांदर / इंदिरा वासवाणी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इंदिरा वासवाणी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 29: | पंक्ति 29: | ||
मसाण ॾांहुं धूकीन्दा थे विया | मसाण ॾांहुं धूकीन्दा थे विया | ||
हिन जो नालो अहिंसा आहे। (बुरा मत सुनो) | हिन जो नालो अहिंसा आहे। (बुरा मत सुनो) | ||
+ | |||
+ | वजूद मुंहिंजे खे | ||
+ | |||
+ | टुकरा करे | ||
+ | रिश्तनि | ||
+ | सुख जो साहु खंयो। | ||
+ | |||
+ | ज़िन्दगी ॿरी ॿरी | ||
+ | |||
+ | रख जो ढेरु थी पेई | ||
+ | रिश्तनि उन ते हथ सेके | ||
+ | धधि खां पाणु बचायो। (बुरा मत कहो) | ||
+ | |||
</poem> | </poem> |
06:19, 1 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण
हू, मुंहुं मोननि में विझी
पाणु लिकाए संसार खां
कुंड मेंपियो आहे शान्त
शरीरु सॼो ज़ख़मियलु सन्दसि
ढेरु पथरनि जो अॻियां
हर लांघाऊं हिकु
पथरु चिटीन्दो थो वञ
हू सचु आहे।
हूअ पंहिंजे अंगनि खे
लीड़ियूं थियल साढ़ीअ सां
हितां हुतां ढकण जी कोशिश पेई करे
हर राहगीर
हुन जो बलातकार करे
सन्दसि अॻियां सिका उछिलाया
हूअ ईमानदारी आहे। (बुरा मत देखो)
हशाम माण्हुनि जा
हिक फथिकन्दड़ लाशखे ढोईन्दा
राम नाम सत है जा नारा हणन्दा
मसाण ॾांहुं धूकीन्दा थे विया
हिन जो नालो अहिंसा आहे। (बुरा मत सुनो)
वजूद मुंहिंजे खे
टुकरा करे
रिश्तनि
सुख जो साहु खंयो।
ज़िन्दगी ॿरी ॿरी
रख जो ढेरु थी पेई
रिश्तनि उन ते हथ सेके
धधि खां पाणु बचायो। (बुरा मत कहो)