भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बहुत तलाशा मैंने लेकिन मिला न कोई बेईमान / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> बह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
 
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=
+
|संग्रह=आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र
 
}}
 
}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}

09:33, 2 जनवरी 2017 का अवतरण

बहुत तलाशा मैंने लेकिन मिला न कोई बेईमान
जेा जितना ही झूठा होता वो उतना ही बने महान।

कौन आकल न कर पायेगा किस दामन पर कितने दाग
मेरा गाँव , तुम्हारी दिल्ली भ्रष्टाचार में एक समान।

लेाकतंत्र का मज़ा लूटते दिल्ली में तुम बैठ के यार
गाँव में बैठके धूल फाँकते लेकिन हम करके मतदान।

किसकी ओर उठायें उँगली ज़िम्मेदार तो पूरा गाँव
उलट -पलट कर लूटन सिंह का ही परिवार रहे परधान।

छापा पड़ा तो उतर गया कितने चेहरों से आज नक़ाब
भरा पड़ा है काला धन अफ़सर , नेता सोने की खान।

जिसको देखेा परेशान है, जनता की ही सबको फिक्ऱ
भेाली - भाली जनता को ही ठगना है सबसे आसान।