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"गुमराह अक्सर हो गया जहाँ रास्ता आसान था / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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गुमराह अक्सर हो गया जहाँ रास्ता आसान था
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कैसी ग़लत-फ़हमी के यारो हो गये हम भी शिकार
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जल्लाद जिसको कहते सब देखा तो वो इन्सान था।
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आराम से दो जून की रोटी जिसे मिलती रही
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गोदाम भरने के लिए वो रात-दिन हैरान था।
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हम लोग घर बैठे रहे पर वोट सारा पड़ गया
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उतनी सही सरकार है जितना सही मतदान था।
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कुर्सी पे जब वो बैठता है कुछ नहीं है देखता
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सत्ता से जब वो दूर था वो भी भला इन्सान था।
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आकाश से छूटी तो वह भी साफ-सुथरी बूँद थी
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पर, गिरी कीचड़ में आकर दिल में क्या अरमान था।
 
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12:23, 2 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

गुमराह अक्सर हो गया जहाँ रास्ता आसान था
बढ़ता रहा बेख़ौफ़ मैं गो सामने तूफ़ान था।

कैसी ग़लत-फ़हमी के यारो हो गये हम भी शिकार
जल्लाद जिसको कहते सब देखा तो वो इन्सान था।

आराम से दो जून की रोटी जिसे मिलती रही
गोदाम भरने के लिए वो रात-दिन हैरान था।

हम लोग घर बैठे रहे पर वोट सारा पड़ गया
उतनी सही सरकार है जितना सही मतदान था।

कुर्सी पे जब वो बैठता है कुछ नहीं है देखता
सत्ता से जब वो दूर था वो भी भला इन्सान था।

आकाश से छूटी तो वह भी साफ-सुथरी बूँद थी
पर, गिरी कीचड़ में आकर दिल में क्या अरमान था।