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"देश की धरती उगले सोना वो भी लिखो तरक़्क़ी में / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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आधा मुल्क भूख में सोता वो भी लिखो तरक़्क़ी में।
  
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देशप्रेम, एकता, समन्वय का भी जाप करो लेकिन
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जात-पात जो टुकड़ा-टुकड़ा वो भी लिखो तरक़्क़ी में।
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सत्य-अहिंसा-मानवता का पाठ बराबर पढ़ा करो
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सरेराह जो पड़ता डाका वो भी लिखो तरक़्क़ी में।
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ऊपर-ऊपर आदर्शों की लंबी-चौड़ी बातें हों
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नीचे-नीचे चालू धंधा वो भी लिखो तरक़्क़ी में।
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बेकारी, भुखमरी, ग़रीबी के कोडे़ खाता फिर भी
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हाथ जोड़कर खड़ा जो बंदा वो भी लिखो तरक़्क़ी में।
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फ़ैशन में जो घूमे नंगा लिखो तरक़्क़ी में वो भी
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फटेटाट में जो अधनंगा वो भी लिखो तरक़्क़ी में।
 
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12:26, 2 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

देश की धरती उगले सोना वो भी लिखो तरक़्क़ी में
आधा मुल्क भूख में सोता वो भी लिखो तरक़्क़ी में।

देशप्रेम, एकता, समन्वय का भी जाप करो लेकिन
जात-पात जो टुकड़ा-टुकड़ा वो भी लिखो तरक़्क़ी में।

सत्य-अहिंसा-मानवता का पाठ बराबर पढ़ा करो
सरेराह जो पड़ता डाका वो भी लिखो तरक़्क़ी में।

ऊपर-ऊपर आदर्शों की लंबी-चौड़ी बातें हों
नीचे-नीचे चालू धंधा वो भी लिखो तरक़्क़ी में।

बेकारी, भुखमरी, ग़रीबी के कोडे़ खाता फिर भी
हाथ जोड़कर खड़ा जो बंदा वो भी लिखो तरक़्क़ी में।
 
फ़ैशन में जो घूमे नंगा लिखो तरक़्क़ी में वो भी
फटेटाट में जो अधनंगा वो भी लिखो तरक़्क़ी में।