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"है वही दुनिया नये अंदाज़ में दिखने लगी / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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एक दूरी रख के अब औलाद भी मिलने लगी।
  
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साल भर लौकी बिना मौसम के अब मिलने लगी।
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तब कहीं मुश्किल से मिलती थीं नशे की गोलियाँ
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पान की दूकान पर ड्रग अब खुले बिकने लगीं।
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बढ़ गये कितने मुक़दमे आपको मालूम है
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जब से मेरे गाँव से भी टैक्सी चलने लगी।
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मशवरा बेटों को दे देते हैं हम डरते हुए
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किन्तु, उनकी माँ तो अब ख़ामोश ही रहने लगी।
 
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12:47, 2 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

है वही दुनिया नये अंदाज़ में दिखने लगी
एक दूरी रख के अब औलाद भी मिलने लगी।

जानते हैं सब ज़हर है खा रहे हैं शौक़ से
साल भर लौकी बिना मौसम के अब मिलने लगी।

तब कहीं मुश्किल से मिलती थीं नशे की गोलियाँ
पान की दूकान पर ड्रग अब खुले बिकने लगीं।

बढ़ गये कितने मुक़दमे आपको मालूम है
जब से मेरे गाँव से भी टैक्सी चलने लगी।

मशवरा बेटों को दे देते हैं हम डरते हुए
किन्तु, उनकी माँ तो अब ख़ामोश ही रहने लगी।