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"वो हमको अच्छा लगता है हम उस पर प्यार लुटाते हैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | हर शख़्स को जिसमें अपना घर, अपना परिवार दिखायी दे | ||
+ | जो ख़ु़द में इक आईना हो हम ऐसी ग़ज़ल सुनाते हैं। | ||
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12:48, 2 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
वो हमको अच्छा लगता है हम उस पर प्यार लुटाते हैं
वो रूठे या ख़ुश रहे मगर हम अपना फ़र्ज़ निभाते हैं।
अब हम इतने मुफ़लिस भी नहीं कि अँधियारे में करें गुज़र
जब मिट्टी का दीया न मिले हम दिल की शम्आ जलाते हैं।
जो ज़्यादा क़ाबिल बनते हैं हम उनसे बचकर रहते हैं
जब से सब बेटे बड़े हुए हम पोतों से बतियाते हैं।
क्या अब भी गाँव के बच्चों के बस्ते में खिलौने होते हैं
क्या अब भी पहले के जैसे गाँवों में बिसाती आते हैं।
ये घर बिल्कुल मज़बूत अभी, गो कि ये बहुत पुराना है
हम इसकी चौखट पर आकर बचपन की ख़ुशबू पाते हैं।
हर शख़्स को जिसमें अपना घर, अपना परिवार दिखायी दे
जो ख़ु़द में इक आईना हो हम ऐसी ग़ज़ल सुनाते हैं।