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"मेरा आँगन मेरे घर में रहने को तैयार नहीं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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ये दिन भी आने वाला है कल तक था ऐतबार नहीं।
  
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बड़ा हो गया चूजा तो भरकर गुमान कुछ यूँ बोला
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पंख निकल आये हैं मेरे माँ की अब दरकार नहीं।
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भूल जाइये राम-भरत जैसे बेटे भी होते थे
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किसी वचन में बँध जाना अब बेटों को स्वीकार नहीं।
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बर्खु़रदार शहद थोड़ी-सी होठों पर रखकर बोलो
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बात काट कर रख देती है बेशक वो तलवार नहीं।
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कोठी, बँगला, महल उठाकर हम तो कै़दी बन बैठे
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बनजारे अच्छे जिनके आगे-पीछे दीवार नहीं।
 
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13:01, 2 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

मेरा आँगन मेरे घर में रहने को तैयार नहीं
ये दिन भी आने वाला है कल तक था ऐतबार नहीं।

बड़ा हो गया चूजा तो भरकर गुमान कुछ यूँ बोला
पंख निकल आये हैं मेरे माँ की अब दरकार नहीं।

भूल जाइये राम-भरत जैसे बेटे भी होते थे
किसी वचन में बँध जाना अब बेटों को स्वीकार नहीं।

बर्खु़रदार शहद थोड़ी-सी होठों पर रखकर बोलो
बात काट कर रख देती है बेशक वो तलवार नहीं।

कोठी, बँगला, महल उठाकर हम तो कै़दी बन बैठे
बनजारे अच्छे जिनके आगे-पीछे दीवार नहीं।