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"अपना है मगर अपनो सी इज़्ज़त नहीं देता / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | फ़रमाइशें हैं शान में उनके भी हो ग़ज़ल | ||
+ | मेरा ज़मीर इसकी इजाज़त नहीं देता। | ||
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+ | मक्का र किसी और को अजमत नहीं देता। | ||
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+ | करिये मदद ग़रीब की दिल खोलकर जनाब | ||
+ | हर शख़्स को वो एक सी क़िस्मत नही देता। | ||
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+ | देखे हैं जो सपने उन्हें कल पर न टालिये | ||
+ | ये वक़्त है पल भर की भी मोहलत नही देता। | ||
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13:03, 2 जनवरी 2017 का अवतरण
अपना है मगर अपनो सी इज़्ज़त नहीं देता
उड़ता हुआ बादल कभी राहत नहीं देता।
फ़रमाइशें हैं शान में उनके भी हो ग़ज़ल
मेरा ज़मीर इसकी इजाज़त नहीं देता।
मेरी भी ख़्वाहिशें हैं कि छू लूँ मैं आसमान
टूटा हुआ पर उड़ने की त़ाक़त नही देता।
बेवजह वो रखता है सदा ख्सु द को नुमायॉ
मक्का र किसी और को अजमत नहीं देता।
करिये मदद ग़रीब की दिल खोलकर जनाब
हर शख़्स को वो एक सी क़िस्मत नही देता।
देखे हैं जो सपने उन्हें कल पर न टालिये
ये वक़्त है पल भर की भी मोहलत नही देता।