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"ग़ज़ल ऐसी कहो जिससे कि मिट्टी की महक आये / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | दुखी मन हो गया तो भी मेरे आँसू नहीं सँभले | ||
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+ | क़लम से रास्ता लेकिन बनाया जा तो सकता है | ||
+ | बुझे तब प्यास जब गंगा मेरे अधरों तलक आये। | ||
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13:28, 2 जनवरी 2017 का अवतरण
ग़ज़ल ऐसी कहो जिससे कि मिट्टी की महक आये
लगे गेहूँ में जब बाली तो कंगन की खनक आये।
मेरे घर भी अमीरी चार दिन मेहमान बन जाये
भरे जोबन तेरा गोरी तो शाख़ों में लचक आये।
नज़र में ख़्वाब वो ढालो कि उड़कर आसमाँ छू लंे
जलाओ वो दिये जिनसे सितारों में चमक आये।
दुखी मन हो गया तो भी मेरे आँसू नहीं सँभले
बहुत खुश हो गया तो भी मेरे आँसू छलक आये।
क़लम से रास्ता लेकिन बनाया जा तो सकता है
बुझे तब प्यास जब गंगा मेरे अधरों तलक आये।