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"जि‍दगी में यूँ तो लाखों ग़म मिले / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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जि‍दगी में यूँ तो लाखों ग़म मिले
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सोच कर खुश हूँ कि फिर भी कम मिले।
  
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साथ देने के लिए कोई नहीं
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नाम ही बस नाम के हमदम मिले।
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बेगुनाही  की सफ़ाई लाख दें
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इस निकम्मी पुलिस को तो हम मिले।
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संत थे, योगी थे, वो धर्मात्मा थे
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फिर कहाँ से आश्रमों में बम मिले।
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वो हरे पेड़ों को कटवाकर कहे
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अब कहाँ पहले-सा वो मौसम मिले।
 
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13:30, 2 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

जि‍दगी में यूँ तो लाखों ग़म मिले
सोच कर खुश हूँ कि फिर भी कम मिले।

साथ देने के लिए कोई नहीं
नाम ही बस नाम के हमदम मिले।

बेगुनाही की सफ़ाई लाख दें
इस निकम्मी पुलिस को तो हम मिले।

संत थे, योगी थे, वो धर्मात्मा थे
फिर कहाँ से आश्रमों में बम मिले।

वो हरे पेड़ों को कटवाकर कहे
अब कहाँ पहले-सा वो मौसम मिले।