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"अश्कों को मैंने पी के भी दिल को बड़ा किया / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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ब्रह्मन के घर में जन्म लिया इत्तफ़ाक़ है
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इन्सानियत का सिर्फ़ मैंने हक़ अदा किया।
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सोचा नहीं  अंजाम और प्यार कर लिया
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हर बार मगर मैंने यही एक ख़ता किया।
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देखा है ख़्वाब भी  तो  तुम्हारे ही वास्ते
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ये है कमाल दोस्तो उसकी शराब  का
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उतरा ही नहीं जो कभी ऐसा नशा किया।
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उसने ही भरोसे की धज्जियाँ  भी उड़ाईं
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अपना समझ  के जिससे कभी मशवरा किया।
 
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13:32, 2 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

 अश्कों को मैंने पी के भी दिल को बड़ा किया
दुश्मन वो था, पर उसका भी मैंने भला किया।

ब्रह्मन के घर में जन्म लिया इत्तफ़ाक़ है
इन्सानियत का सिर्फ़ मैंने हक़ अदा किया।

सोचा नहीं अंजाम और प्यार कर लिया
हर बार मगर मैंने यही एक ख़ता किया।

देखा है ख़्वाब भी तो तुम्हारे ही वास्ते
कहते हो तुम्हारे लिए मैंने है क्या किया।

ये है कमाल दोस्तो उसकी शराब का
उतरा ही नहीं जो कभी ऐसा नशा किया।

उसने ही भरोसे की धज्जियाँ भी उड़ाईं
अपना समझ के जिससे कभी मशवरा किया।