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"बहुत तलाशा मैंने लेकिन मिला न कोई बेईमान / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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जेा जितना ही झूठा होता वो उतना ही बने महान। | जेा जितना ही झूठा होता वो उतना ही बने महान। | ||
− | कौन | + | कौन आकलन कर पायेगा किस दामन पर कितने दाग |
मेरा गाँव , तुम्हारी दिल्ली भ्रष्टाचार में एक समान। | मेरा गाँव , तुम्हारी दिल्ली भ्रष्टाचार में एक समान। | ||
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छापा पड़ा तो उतर गया कितने चेहरों से आज नक़ाब | छापा पड़ा तो उतर गया कितने चेहरों से आज नक़ाब | ||
− | भरा पड़ा है काला धन अफ़सर , नेता सोने की खान। | + | भरा पड़ा है काला धन अफ़सर, नेता सोने की खान। |
जिसको देखेा परेशान है, जनता की ही सबको फिक्ऱ | जिसको देखेा परेशान है, जनता की ही सबको फिक्ऱ | ||
− | भेाली - भाली जनता को ही ठगना है सबसे आसान। | + | भेाली-भाली जनता को ही ठगना है सबसे आसान। |
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22:08, 3 जनवरी 2017 का अवतरण
बहुत तलाशा मैंने लेकिन मिला न कोई बेईमान
जेा जितना ही झूठा होता वो उतना ही बने महान।
कौन आकलन कर पायेगा किस दामन पर कितने दाग
मेरा गाँव , तुम्हारी दिल्ली भ्रष्टाचार में एक समान।
लेाकतंत्र का मज़ा लूटते दिल्ली में तुम बैठ के यार
गाँव में बैठके धूल फाँकते लेकिन हम करके मतदान।
किसकी ओर उठायें उँगली ज़िम्मेदार तो पूरा गाँव
उलट -पलट कर लूटन सिंह का ही परिवार रहे परधान।
छापा पड़ा तो उतर गया कितने चेहरों से आज नक़ाब
भरा पड़ा है काला धन अफ़सर, नेता सोने की खान।
जिसको देखेा परेशान है, जनता की ही सबको फिक्ऱ
भेाली-भाली जनता को ही ठगना है सबसे आसान।