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"अपना है मगर अपनो सी इज़्ज़त नहीं देता / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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अपना है मगर अपनो सी इज़्ज़त नहीं देता
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मेरी भी ख़्वाहिशें हैं कि छू लूँ मैं आसमान
 
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बेवजह वो रखता है सदा ख्सु द को नुमायॉ
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मक्का र कि‍सी और को अजमत नहीं देता।
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मक्कार कि‍सी और को अजमत नहीं देता।
  
 
करिये मदद ग़रीब की दिल खोलकर जनाब
 
करिये मदद ग़रीब की दिल खोलकर जनाब

22:21, 3 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

अपना है मगर अपनों सी इज़्ज़त नहीं देता
उड़ता हुआ बादल कभी राहत नहीं देता।

फ़रमाइशें हैं शान में उनके भी हो ग़ज़ल
मेरा ज़मीर इसकी इजाज़त नहीं देता।

मेरी भी ख़्वाहिशें हैं कि छू लूँ मैं आसमान
टूटा हुआ पर उड़ने की ताक़त नही देता।

बेवजह वो रखता है सदा ख़ुद को नुमायाँ
मक्कार कि‍सी और को अजमत नहीं देता।

करिये मदद ग़रीब की दिल खोलकर जनाब
हर शख़्स को वो एक सी क़िस्मत नही देता।

देखे हैं जो सपने उन्हें कल पर न टालिये
ये वक़्त है पल भर की भी मोहलत नही देता।