"गरीबा / धनहा पांत / पृष्ठ - 3 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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− | + | पर वास्तव मं खेत हा काकर, नाप के बाद हो सकही ज्ञात | |
+ | तुम्मन हमर साथ में रेंगव, खेत नाप मंय सच कहि देत। | ||
+ | तुम्हर उपस्थिति आवश्यक यदि बाद मं उठत लड़ाई। | ||
+ | गलत काम ला रोक सकत- अउ न्याय दुहू बन साक्षी। | ||
+ | सोनसहाय पंच पटवारी, राह धरिन नापे बर खेत | ||
+ | नक्शा बांस जरीब उंकर तिर, सब झन पहुँचिन मोतीखेत। | ||
+ | उहां फकीरा पूर्व ले हाजिर, घंसिया हा बोलिस फटकार- | ||
+ | “सोनू मण्डल के धरती पर, तंय काबर अधिकार बतात?” | ||
+ | कथय फकीरा हाथ बजा के- “एकर स्वामी मंय भर आंव | ||
+ | एकर संबंध मं तुम पूछव, मंय दे सकथंव सही जवाब। | ||
+ | इहां के माटी कोन किसम के, एकर मेड़ कतिक अस पेड़ | ||
+ | कते फसल हा उत्तम उबजत, छिचना परत कतिक अस खाद? | ||
+ | यदि सोनू हा दावा मारत, मोर प्रश्न के उत्तर लाय- | ||
+ | कतका लगत धान के बीजा, कतका लगत चना के बीज? | ||
+ | यदि सोनू सच उत्तर देवत, कर दव बंद नाप के काम | ||
+ | मोतीखेत सौंप मंय देवत, हार जहंव मंय अपने आप।” | ||
+ | सोनू नांग असन फुंफकारिस -“मोर पास हे कतका भूमि | ||
+ | कतका अन धन सोना चांदी, कतका अस हे गरुवा गाय। | ||
+ | मोला एको कनिक ज्ञात नइ, नौकर रखथंय इंकर हिसाब | ||
+ | मंय हा बस अतका जानत हंव, मोतीखेत आय बस मोर।” | ||
+ | पटवारी हा बीच मं छेंकिस -“तुम्मन बहस करो झन व्यर्थ | ||
+ | मंय हा खेत नाप देवत झप, बता देत स्वामी के नाम।” | ||
+ | पटवारी अउ कृषक पंच मन, किंजरत नाप करत हें खार | ||
+ | यद्यपि उहां जरीब घुमत हे, पर निर्णय हा पूर्व के होय। | ||
+ | पटवारी हा नाप के बोलिस- “भाई पंच तुमन सुन लेव | ||
+ | जिंहा भूमि के लड़ई हा उठथय, मंय जाथंव नापे बर भूमि। | ||
+ | वैज्ञानिक के गणना गलती, शिक्षक के सब ज्ञान हा झूठ | ||
+ | लेकिन मोर नाप सच उतरत, तब पटवारी पर विश्वास। | ||
+ | मोतीखेत रहय सोनू तिर उही हा वास्तविक स्वामी। | ||
+ | इहां ले तुरते जाय फकीरा खेत ला मार सलामी। | ||
+ | पटवारी ला किहिस फकीरा -“तंय हा करेस गलत अन्याय | ||
+ | धन मं तोर ईमान बेचा गिस, पद के गरिमा ला बिसरेस। | ||
+ | मोतीखेत के हर कण मोरेच, माटी के सुगंध तक मोर | ||
+ | अपन प्राण ला गंवा सकत हंव, मगर खेत ला तज नइ पांव।” | ||
+ | मुटकी हा फकीरा ला बोलिस -“तंय कानून ला झन ले हाथ | ||
+ | कंघी नक्शा अउ जरीब मन, जमों जिनिस शासन के आय। | ||
+ | पटवारी के निजी वस्तु नइ, जेमां करय कुछुच अन्याय | ||
+ | ओमन मं जइसन हे अंकित, पटवारी फुरिया दिस नाप। | ||
+ | हमूं पंच मन इहां आय हन, दुनों पक्ष ला बांटन न्याय | ||
+ | सीमांकन हा उचित होय हे, हमर आंख हा देखिस साफ” | ||
+ | झड़ी हा फकीरा पर बमकिस- “यदि तंय हा करबे कुछ आड़ | ||
+ | जमों पंच मन दण्डित करिहंय, न्यायालय मं खाबे हार। | ||
+ | दस्तावेज पंच पटवारी, बनिहंय साक्षी तोर विरुद्ध | ||
+ | तंय हा मोतीखेत ला तज अब, इहां ले निकलिच जा चुपचाप।” | ||
+ | बहत फकीरा के आँसू हा, खेत के माटी रख लिस हाथ | ||
+ | कलपिस- “तोला मंय माने हंव, सेवा कर- लगाय मंय माथ। | ||
+ | मगर मोर हक ले बिछले तंय, वास्तव मं तंय धोखा देस | ||
+ | तंय धनवन्ता के पुतरी अस, ओकर हाथ मं खुद चल देस। | ||
+ | मंय तोला वाजिब पूछत हंव- कार व्यर्थ चल दिस श्रम मोर | ||
+ | आय कृषक हा तोर मयारु, कब तक भगबे ओला त्याग?” | ||
+ | बोम फार रो डरिस फकीरा, धथुवा गे होगिस निरुपाय | ||
+ | धरती के पंइया पर लहुटत, अंतस हृदय करत हे हाय। | ||
+ | पूंजीपति मन तिर कंस पूंजी, बिसा लेत कानून नियाव | ||
+ | सोनू के मुंह खुशी मं चमकत, पइसा भर- पर के हक लूट। | ||
+ | सोनू सब नौकर ला बोलिस- “अब कउनो ला झन डर्राव | ||
+ | मोतीखेत मोर हक लग गिस, नांगर ला बिन थमे चलाव।” | ||
+ | सोनसाय हा दांव जीत गिस, नांगर हा रेंगत निर्बाध | ||
+ | सोनू अउ पटवारी लहुटत, हंस हंस बोलत मित्र समान। | ||
+ | उंकर पिछू मं पंच चलत हें, कहां लुवाठ पूछ सम्मान | ||
+ | जहां जुआड़ी हारत सब धन, ओकर होत नमूसी खूब। | ||
+ | हलू अवाज कथय अंकालू -“आज फेर हो गिस अन्याय | ||
+ | दस्तावेज पंच पटवारी, गलत काम मं सामिल होय। | ||
+ | हमर पास नइ हृदय न आत्मा, पाप पुण्य के भय या त्रास | ||
+ | कृषक गरीब हा नंगरा हो गिस, लेकिन हमन द्रवित नइ होय। | ||
+ | चाहे तुम्मन कुछुच कहव जी सोनसाय गरकट्टा। | ||
+ | मरहा मन के रकत ला चुहकत होवत हट्टा कट्टा। | ||
+ | कथय लतेल- “हमूं जानत हन, सोनू के खराब सब नीति | ||
+ | आज फकीरा के हक छीनिस, कल दूसर ला करिहय नाश। | ||
+ | आखिर हम रउती का जोंगन, सोनसाय तिर धन के शक्ति | ||
+ | ओकर सम्मुख निहू पदी अन, होथय हमरेच बिन्द्राबिनास ” | ||
+ | मुटकी बोलिस- “रहव कलेचुप, सोनू हा ओहिले चल जात | ||
+ | यदि चुगली चारी ला सुनिहय, बफल हमर पर करिहय घात। | ||
+ | गांव हा ओकर भूमि हा ओकर, हम जीयत हन ओकरेच छांव | ||
+ | पानी मं रहना हे हर क्षण, कोन मगर ला शत्रु बनाय!” | ||
+ | गीन पंच मन अपन अपन घर, अंकालू गिस खुद के ठौर | ||
+ | दुखिया हा छानी पर बइठे, करत हवय खपरा ला ठीक। | ||
+ | बन गंभीर कथय अंकालू- “छानी पर बइठे हस कार | ||
+ | यदि ऊपर ले तरी मं गिरबे, तोर देह भर परिहय मार?” | ||
+ | दुखिया किहिस- “सरक गे खपरा, यदि होवत रझरझ बरसात | ||
+ | पानी हा कुरिया मं घुसिहय, पिल पिल मात जहय घर द्वार। | ||
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12:29, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
पर वास्तव मं खेत हा काकर, नाप के बाद हो सकही ज्ञात
तुम्मन हमर साथ में रेंगव, खेत नाप मंय सच कहि देत।
तुम्हर उपस्थिति आवश्यक यदि बाद मं उठत लड़ाई।
गलत काम ला रोक सकत- अउ न्याय दुहू बन साक्षी।
सोनसहाय पंच पटवारी, राह धरिन नापे बर खेत
नक्शा बांस जरीब उंकर तिर, सब झन पहुँचिन मोतीखेत।
उहां फकीरा पूर्व ले हाजिर, घंसिया हा बोलिस फटकार-
“सोनू मण्डल के धरती पर, तंय काबर अधिकार बतात?”
कथय फकीरा हाथ बजा के- “एकर स्वामी मंय भर आंव
एकर संबंध मं तुम पूछव, मंय दे सकथंव सही जवाब।
इहां के माटी कोन किसम के, एकर मेड़ कतिक अस पेड़
कते फसल हा उत्तम उबजत, छिचना परत कतिक अस खाद?
यदि सोनू हा दावा मारत, मोर प्रश्न के उत्तर लाय-
कतका लगत धान के बीजा, कतका लगत चना के बीज?
यदि सोनू सच उत्तर देवत, कर दव बंद नाप के काम
मोतीखेत सौंप मंय देवत, हार जहंव मंय अपने आप।”
सोनू नांग असन फुंफकारिस -“मोर पास हे कतका भूमि
कतका अन धन सोना चांदी, कतका अस हे गरुवा गाय।
मोला एको कनिक ज्ञात नइ, नौकर रखथंय इंकर हिसाब
मंय हा बस अतका जानत हंव, मोतीखेत आय बस मोर।”
पटवारी हा बीच मं छेंकिस -“तुम्मन बहस करो झन व्यर्थ
मंय हा खेत नाप देवत झप, बता देत स्वामी के नाम।”
पटवारी अउ कृषक पंच मन, किंजरत नाप करत हें खार
यद्यपि उहां जरीब घुमत हे, पर निर्णय हा पूर्व के होय।
पटवारी हा नाप के बोलिस- “भाई पंच तुमन सुन लेव
जिंहा भूमि के लड़ई हा उठथय, मंय जाथंव नापे बर भूमि।
वैज्ञानिक के गणना गलती, शिक्षक के सब ज्ञान हा झूठ
लेकिन मोर नाप सच उतरत, तब पटवारी पर विश्वास।
मोतीखेत रहय सोनू तिर उही हा वास्तविक स्वामी।
इहां ले तुरते जाय फकीरा खेत ला मार सलामी।
पटवारी ला किहिस फकीरा -“तंय हा करेस गलत अन्याय
धन मं तोर ईमान बेचा गिस, पद के गरिमा ला बिसरेस।
मोतीखेत के हर कण मोरेच, माटी के सुगंध तक मोर
अपन प्राण ला गंवा सकत हंव, मगर खेत ला तज नइ पांव।”
मुटकी हा फकीरा ला बोलिस -“तंय कानून ला झन ले हाथ
कंघी नक्शा अउ जरीब मन, जमों जिनिस शासन के आय।
पटवारी के निजी वस्तु नइ, जेमां करय कुछुच अन्याय
ओमन मं जइसन हे अंकित, पटवारी फुरिया दिस नाप।
हमूं पंच मन इहां आय हन, दुनों पक्ष ला बांटन न्याय
सीमांकन हा उचित होय हे, हमर आंख हा देखिस साफ”
झड़ी हा फकीरा पर बमकिस- “यदि तंय हा करबे कुछ आड़
जमों पंच मन दण्डित करिहंय, न्यायालय मं खाबे हार।
दस्तावेज पंच पटवारी, बनिहंय साक्षी तोर विरुद्ध
तंय हा मोतीखेत ला तज अब, इहां ले निकलिच जा चुपचाप।”
बहत फकीरा के आँसू हा, खेत के माटी रख लिस हाथ
कलपिस- “तोला मंय माने हंव, सेवा कर- लगाय मंय माथ।
मगर मोर हक ले बिछले तंय, वास्तव मं तंय धोखा देस
तंय धनवन्ता के पुतरी अस, ओकर हाथ मं खुद चल देस।
मंय तोला वाजिब पूछत हंव- कार व्यर्थ चल दिस श्रम मोर
आय कृषक हा तोर मयारु, कब तक भगबे ओला त्याग?”
बोम फार रो डरिस फकीरा, धथुवा गे होगिस निरुपाय
धरती के पंइया पर लहुटत, अंतस हृदय करत हे हाय।
पूंजीपति मन तिर कंस पूंजी, बिसा लेत कानून नियाव
सोनू के मुंह खुशी मं चमकत, पइसा भर- पर के हक लूट।
सोनू सब नौकर ला बोलिस- “अब कउनो ला झन डर्राव
मोतीखेत मोर हक लग गिस, नांगर ला बिन थमे चलाव।”
सोनसाय हा दांव जीत गिस, नांगर हा रेंगत निर्बाध
सोनू अउ पटवारी लहुटत, हंस हंस बोलत मित्र समान।
उंकर पिछू मं पंच चलत हें, कहां लुवाठ पूछ सम्मान
जहां जुआड़ी हारत सब धन, ओकर होत नमूसी खूब।
हलू अवाज कथय अंकालू -“आज फेर हो गिस अन्याय
दस्तावेज पंच पटवारी, गलत काम मं सामिल होय।
हमर पास नइ हृदय न आत्मा, पाप पुण्य के भय या त्रास
कृषक गरीब हा नंगरा हो गिस, लेकिन हमन द्रवित नइ होय।
चाहे तुम्मन कुछुच कहव जी सोनसाय गरकट्टा।
मरहा मन के रकत ला चुहकत होवत हट्टा कट्टा।
कथय लतेल- “हमूं जानत हन, सोनू के खराब सब नीति
आज फकीरा के हक छीनिस, कल दूसर ला करिहय नाश।
आखिर हम रउती का जोंगन, सोनसाय तिर धन के शक्ति
ओकर सम्मुख निहू पदी अन, होथय हमरेच बिन्द्राबिनास ”
मुटकी बोलिस- “रहव कलेचुप, सोनू हा ओहिले चल जात
यदि चुगली चारी ला सुनिहय, बफल हमर पर करिहय घात।
गांव हा ओकर भूमि हा ओकर, हम जीयत हन ओकरेच छांव
पानी मं रहना हे हर क्षण, कोन मगर ला शत्रु बनाय!”
गीन पंच मन अपन अपन घर, अंकालू गिस खुद के ठौर
दुखिया हा छानी पर बइठे, करत हवय खपरा ला ठीक।
बन गंभीर कथय अंकालू- “छानी पर बइठे हस कार
यदि ऊपर ले तरी मं गिरबे, तोर देह भर परिहय मार?”
दुखिया किहिस- “सरक गे खपरा, यदि होवत रझरझ बरसात
पानी हा कुरिया मं घुसिहय, पिल पिल मात जहय घर द्वार।