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"गरीबा / लाखड़ी पांत / पृष्ठ - 2 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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कथय गरीबा हा दुख स्वर मं -“”अपन कष्ट मंय काय बतांव
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मोर ददा हा सरग चलेगे, मुड़ पर गिरिस बिपत के गाज।
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जलगस ओहर जग मं जीयत, मंय आनीबानी सुख पाय
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लेकिन आज साथ छोड़िस तंह, ओकर बिन मंय होय अनाथ।”
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परिस अचम्भा मं डकहर हा -“”तंय बताय हस दुख के बात
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बपुरा सुद्धू भला आदमी, सब संग रखिस मधुर संबंध।
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पर ए बात समझ ले बाहिर – सोनू घलो आज मर गीस।
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एक दिवस मं दू झन मनसे, क्रूर काल के चई मं गीन।
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लगथय के दई हा खिसिया गिस, दिखत गांव के हाल बेहाल
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अब काकर पर करन भरोसा, गांव हा बदलत हे शमसान।”
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“”मोला देव कफन के कपड़ा, मदद करे बर तंय चल साथ
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शव ला उठा लेगबो मरघट, एकर बर जरूरत हे तोर।”
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डकहर पीताम्बरी देखाथय -“”मोला तंय बिल्कुल झन रोक
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एला सोनू के शव रखिहंव, तब मंय हा जावत ओ ओर।
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धनवा अउ मंय भाई अस अन, मंय हा ओकर आहंव काम
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जानबूझ के अगर बिलमिहंव, धनवा करिहय तनकनिपोर।
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अपन काम साधारण निपटा, व्यर्थ खर्च ला झन कर भूल
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ढोंग धतूरा छोड़ गरीबा – रकम बचा के भविष्य सुधार।”
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करिस गरीबा अड़बड़ करलइ, पर डकहर कपड़ा नइ दीस
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आखिर हार गरीबा हा अब, अपन मकान लहुट के अैभस।
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होत कोन दुर्बल के मितवा, सक्षम के सहायक संसार
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बरसा जल समुद्र मं गिरथय, खेत हा देखत मुंह ला फार।
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अपन ददा के शव पर डारिस, चिरहा धोती एक निकाल
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बांस कहां खटली बनाय बर, होन चहत अब शव बेहाल।
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ओतिर हवय उपाय एक ठक – झींकिस कांड़ लगे ते बांस
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खटली बना रखिस ओकर पर – मरे हवय सुद्धू के लाश।
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लाश उठाय के क्षण आइस तंह, करत गरीबा एक विचार-
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यदि लइका मसानगंज जाहंय, पालक नइ रहिहंय थिरथार।
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मनसे मन बिफड़े पहिलिच के, एमां धरिहय तिजरा रोग
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बालक मन ला इहां ले भेजंव, दुख ला लेंव मंय खुद हा भोग।,
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शंका ला फुरियैस गरीबा, लइका मन ला चढ़गे जोश
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जंगी कथय बढ़ा के हिम्मत -“”तंय डरपोकना अस डर गेस।
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तंय हा अड़िल जवनहा लेकिन, हिम्मत तोर बहुत कमजोर
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तंय हा हमला मदद नइ मांगत, शक्ति हमर तिर मरघट जाय।
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सुद्धू कथा कहानी बोलिस, ओकर संग मं हंसी मजाक
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यदि अंतिम क्षण मं हम हटबो, हमर ले बढ़ के कपटी कोन!
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यदि डर्रात तिंही घर मं रूक, कैची बन इच्छा झन काट
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अपन मित्र के थिरबहा करबो, तब करतब हो जहय सपाट।”
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छेंकिस खूब गरीबा पर नइ मानिन बालक बाती।
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मरघट जाय तियार होत काबर के जावत साथी।
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बालक लघु अउ ऊंच गरीबा, ऊपर नीचे खटली होत
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शव उठाय बेवसाय बनत नइ, कइसे करन करत हें सोच।
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आगू ला बोहि लीस गरीबा, लइका मन तोलगी धर जात
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उंकर खांद हा बहुत पिरावत, बदबद गरुहोत हे लाश।
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एक दुसर के मदद करत हें, काबर बोझ उठावय एक!
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लइका मन के करनी परखव – करत अनर्थ के करनी नेक!
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लइका मन ला बुद्धिहीन कहि, एल्हत आत जवान सियान
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लेकिन सूक्ष्म दृष्टि से अब सब, करो भला इनकर पहिचान।
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जेंन अपन ला कहत सुजानिक, कहत शांतिवादी मंय आंव
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आय उहू मन जनता के अरि, जर ला खोद करावत युद्ध।
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पर उपकार के बात ला करथंय, पर करथंय पर के नुकसान
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याने कथनी अउ करनी मं, अमृत अउ विष ततका भेद।
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लइका मन के हृदय हा निश्छल, अगर सबो झन कोमल शुद्ध
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दंगा कपट लड़ाई रिपुता, सब दिन बर हो जहय समाप्त।
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मरघट पहुंच उतारिन खटली, कोड़त दर दफनाय बर लाश
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साबर रापा बिकट बजावत, थक गिन पर नइ होत हताश।
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आधा काम होय अतकिच मं, आत दिखिस सोनू के लाश
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रूपिया नावत लाई छितत लाश पर, सोनू रिहिस गांव के खास।
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टहलू, रमझू झड़ी उहां हें – डकहर सुखी भुखू धनसाय
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बन्जू बउदा हगरुकातिक, केजा बहुरा गुहा ग्रामीण।
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मानो सब के ददा हा मरगे, कुल्ह के रोवत आंसू ढार
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बदल बदल के खटली बोहत, जइसे के श्रद्धालु अपार।
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लाश रखाय नवा खटली मं, ओढ़े हे नव उंचहा वस्त्र
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फूल गुलाल छिंचाय बहुत अक, सुद्धू अस नइ हे कंगाल।
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जहां लाश हा मरघट पहुंचिस, फट उतार नीचे रख दीन
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देख गरीबा अउ बालक ला, मनसे मन कुब्बल खखुवैन।
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कातिक अउ बहुरा दूनों झन, अैनन गरीबा के तिर दौड़
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बहुरा झड़किस – “”अरे गरीबा, काबर करत अबुज अस काम।
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लइका होथंय भोला भाला, नइ जानंय फरफंद कुचाल
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इहां लाय ओमन ला भुरिया, का कारण देवत हस दण्ड!”
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कातिक बोलिस -“”अरे गरीबा, लइका मन ला काबर लाय
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अपन ददा के संग एमन ला, चहत हवस दर मं दफनाय!
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तंय जानत मरघट मं रहिथंय – रक्सा दानव प्रेतिन भूत
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तंय खुद ला हुसनाक समझथस, पर तंय काबर आज बिचेत!
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पर के पिला ला धर लाने हस, कते व्यक्ति हा दिस अधिकार
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बालक मन ला इहां ले भगवा, वरना तोर अब खुंटीउजार।”
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लइका मन ला हटा गरीबा, जोंगत काम अपन बस एक
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जब सब मदद ले भागंय दुरिहा, मनसे करय स्वयं के काम।
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धनवा डहर बहुत झन मनसे, अपन अपन ले जोंगत काम
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सब ग्रामीण मदद पहुंचावत, ताकि कहय धनवा हा नेक।
 
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15:09, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

कथय गरीबा हा दुख स्वर मं -“”अपन कष्ट मंय काय बतांव
मोर ददा हा सरग चलेगे, मुड़ पर गिरिस बिपत के गाज।
जलगस ओहर जग मं जीयत, मंय आनीबानी सुख पाय
लेकिन आज साथ छोड़िस तंह, ओकर बिन मंय होय अनाथ।”
परिस अचम्भा मं डकहर हा -“”तंय बताय हस दुख के बात
बपुरा सुद्धू भला आदमी, सब संग रखिस मधुर संबंध।
पर ए बात समझ ले बाहिर – सोनू घलो आज मर गीस।
एक दिवस मं दू झन मनसे, क्रूर काल के चई मं गीन।
लगथय के दई हा खिसिया गिस, दिखत गांव के हाल बेहाल
अब काकर पर करन भरोसा, गांव हा बदलत हे शमसान।”
“”मोला देव कफन के कपड़ा, मदद करे बर तंय चल साथ
शव ला उठा लेगबो मरघट, एकर बर जरूरत हे तोर।”
डकहर पीताम्बरी देखाथय -“”मोला तंय बिल्कुल झन रोक
एला सोनू के शव रखिहंव, तब मंय हा जावत ओ ओर।
धनवा अउ मंय भाई अस अन, मंय हा ओकर आहंव काम
जानबूझ के अगर बिलमिहंव, धनवा करिहय तनकनिपोर।
अपन काम साधारण निपटा, व्यर्थ खर्च ला झन कर भूल
ढोंग धतूरा छोड़ गरीबा – रकम बचा के भविष्य सुधार।”
करिस गरीबा अड़बड़ करलइ, पर डकहर कपड़ा नइ दीस
आखिर हार गरीबा हा अब, अपन मकान लहुट के अैभस।
होत कोन दुर्बल के मितवा, सक्षम के सहायक संसार
बरसा जल समुद्र मं गिरथय, खेत हा देखत मुंह ला फार।
अपन ददा के शव पर डारिस, चिरहा धोती एक निकाल
बांस कहां खटली बनाय बर, होन चहत अब शव बेहाल।
ओतिर हवय उपाय एक ठक – झींकिस कांड़ लगे ते बांस
खटली बना रखिस ओकर पर – मरे हवय सुद्धू के लाश।
लाश उठाय के क्षण आइस तंह, करत गरीबा एक विचार-
यदि लइका मसानगंज जाहंय, पालक नइ रहिहंय थिरथार।
मनसे मन बिफड़े पहिलिच के, एमां धरिहय तिजरा रोग
बालक मन ला इहां ले भेजंव, दुख ला लेंव मंय खुद हा भोग।,
शंका ला फुरियैस गरीबा, लइका मन ला चढ़गे जोश
जंगी कथय बढ़ा के हिम्मत -“”तंय डरपोकना अस डर गेस।
तंय हा अड़िल जवनहा लेकिन, हिम्मत तोर बहुत कमजोर
तंय हा हमला मदद नइ मांगत, शक्ति हमर तिर मरघट जाय।
सुद्धू कथा कहानी बोलिस, ओकर संग मं हंसी मजाक
यदि अंतिम क्षण मं हम हटबो, हमर ले बढ़ के कपटी कोन!
यदि डर्रात तिंही घर मं रूक, कैची बन इच्छा झन काट
अपन मित्र के थिरबहा करबो, तब करतब हो जहय सपाट।”
छेंकिस खूब गरीबा पर नइ मानिन बालक बाती।
मरघट जाय तियार होत काबर के जावत साथी।
बालक लघु अउ ऊंच गरीबा, ऊपर नीचे खटली होत
शव उठाय बेवसाय बनत नइ, कइसे करन करत हें सोच।
आगू ला बोहि लीस गरीबा, लइका मन तोलगी धर जात
उंकर खांद हा बहुत पिरावत, बदबद गरुहोत हे लाश।
एक दुसर के मदद करत हें, काबर बोझ उठावय एक!
लइका मन के करनी परखव – करत अनर्थ के करनी नेक!
लइका मन ला बुद्धिहीन कहि, एल्हत आत जवान सियान
लेकिन सूक्ष्म दृष्टि से अब सब, करो भला इनकर पहिचान।
जेंन अपन ला कहत सुजानिक, कहत शांतिवादी मंय आंव
आय उहू मन जनता के अरि, जर ला खोद करावत युद्ध।
पर उपकार के बात ला करथंय, पर करथंय पर के नुकसान
याने कथनी अउ करनी मं, अमृत अउ विष ततका भेद।
लइका मन के हृदय हा निश्छल, अगर सबो झन कोमल शुद्ध
दंगा कपट लड़ाई रिपुता, सब दिन बर हो जहय समाप्त।
मरघट पहुंच उतारिन खटली, कोड़त दर दफनाय बर लाश
साबर रापा बिकट बजावत, थक गिन पर नइ होत हताश।
आधा काम होय अतकिच मं, आत दिखिस सोनू के लाश
रूपिया नावत लाई छितत लाश पर, सोनू रिहिस गांव के खास।
टहलू, रमझू झड़ी उहां हें – डकहर सुखी भुखू धनसाय
बन्जू बउदा हगरुकातिक, केजा बहुरा गुहा ग्रामीण।
मानो सब के ददा हा मरगे, कुल्ह के रोवत आंसू ढार
बदल बदल के खटली बोहत, जइसे के श्रद्धालु अपार।
लाश रखाय नवा खटली मं, ओढ़े हे नव उंचहा वस्त्र
फूल गुलाल छिंचाय बहुत अक, सुद्धू अस नइ हे कंगाल।
जहां लाश हा मरघट पहुंचिस, फट उतार नीचे रख दीन
देख गरीबा अउ बालक ला, मनसे मन कुब्बल खखुवैन।
कातिक अउ बहुरा दूनों झन, अैनन गरीबा के तिर दौड़
बहुरा झड़किस – “”अरे गरीबा, काबर करत अबुज अस काम।
लइका होथंय भोला भाला, नइ जानंय फरफंद कुचाल
इहां लाय ओमन ला भुरिया, का कारण देवत हस दण्ड!”
कातिक बोलिस -“”अरे गरीबा, लइका मन ला काबर लाय
अपन ददा के संग एमन ला, चहत हवस दर मं दफनाय!
तंय जानत मरघट मं रहिथंय – रक्सा दानव प्रेतिन भूत
तंय खुद ला हुसनाक समझथस, पर तंय काबर आज बिचेत!
पर के पिला ला धर लाने हस, कते व्यक्ति हा दिस अधिकार
बालक मन ला इहां ले भगवा, वरना तोर अब खुंटीउजार।”
लइका मन ला हटा गरीबा, जोंगत काम अपन बस एक
जब सब मदद ले भागंय दुरिहा, मनसे करय स्वयं के काम।
धनवा डहर बहुत झन मनसे, अपन अपन ले जोंगत काम
सब ग्रामीण मदद पहुंचावत, ताकि कहय धनवा हा नेक।