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"गरीबा / लाखड़ी पांत / पृष्ठ - 5 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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किहिस पुरानिक -“”बुरा मान झन – तंय बतात हस बिल्कुल झूठ
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ज्ञानिक ग्रंथ जेन ला बोलिन, उंकर तथ्य पर मारत मूठ।
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पर तंय हा विद्वान बनस नइ, तंय हमला भरमा झन व्यर्थ
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जउन हा सच ते दिखत हे संउहत, कुष्ठ रोग नइ होय समाप्त।”
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मंसा अपन तर्क ला रखथय -“”मानव पास शक्ति भण्डार
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बात असम्भव रहिथय तेला, संभव बर कर देत प्रयास।
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धन हा सम वितरण नइ होवय, रहिथंय दीन धनी इंसान
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तीर मं तुक्का लग जावय कहि, करथंय समाजवाद के बात।
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कुष्ठ रोग हा अजर अमर हे, ओला खतम करत हे कोन
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मगर रोग हा मिट जाये कहि, मनखे सक भर करत प्रयास।
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एकर ले नइ होय निराशा, जीवन जियत आस के साथ
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दूध समुद्र होय नइ जग मं, तभो ले ओकर पर विश्वास।”
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कई ठक तर्क गरीबा रख दिस, तभो वृद्ध मन फांक उड़ैन
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ओंड़ा आत पेट हा भर गिस, हाथ अंचोय बर उदिम जमैन।
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अन्न के नशा छपाइस तंहने, सोय चहत हें दुनों सियान
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बोलत हवय गरीबा टुड़बुड़, पर एमन देवत नइ ध्यान।
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सिरिफ गरीबा करत जागरण, ओकर मन मं चलत विचार-
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“अब मंय हा मनमरजी करिहंव, भल दुसर बोलंय गद्दार।
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सब के मान चलत आवत हंव, लेकिन मिलिस मात्र नुकसान
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ओमन चहत गरीबा भागय, बेच के अपने माल मकान।’
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मनसे जब निराश हो जाथय, या सब डहर ले दुख – बरसात
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ओहर मन मं अनबन सोचत, क्रोध देखात – करत आक्रोश।
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कतका बखत आंख हा लग गे, कहां गरीबा जानन पैस!
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ओकर सुते आंख खुलथय जब, शासन सुरूज देव के अै स।
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लेथय टोह वृद्ध मन कोती, उनकर छैंहा मिल नइ पैस
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घर ला जांचिस जहां गरीबा, कतको जिनिस नदारत पैस।
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घर ले निकल गरीबा खोजिस, दूनों वृद्ध ला नंगत दूर
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लेकिन उंकर मिलिस नइ दउहा, आखिर विवश आत हे लौट।
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तभे गुरुझंगलू हा मिल गिस, ओहर रख दिस एक सवाल-
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“”तंय फिफियाय हवस का कारण – करत हवस तंय काकर खोज!
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मनखे दुख ला कभु बलाय नइ, दुख आ जाथय तब परेशान
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तोरो कोई जिनिस गंवा गिस, तभे दिखत अड़बड़ परेशान?”
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कथय गरीबा -“”तंय भांपे हस सोला आना ठौंका।
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ओकर कतका चर्चा छेड़न इहां रोज दिन घाटा।
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मगर रात के घटना ला सुन, अैहन हमर घर दू झन वृद्ध
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उनकर नाम पुरानिक मंसा, कुष्ठ रोग के रिहिस मरीज।
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ओमन अपन विचार ए राखिन – पुरबल जनम होय जे काम
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ओकर फल ए जनम मं पावत, ईश्वर हा देवत हे दण्ड।
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पर मंय उंकर बात फांके हंव – कुष्ठ रोग हा दैहिक रोग
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खतम करे बर औषधि बन गिस, मोर वाक्य पर कर विश्वास।
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पर डोकरा मन अड़बड़ अंड़ियल, कैची अस काटिन सब गोठ
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मंय समझाय करे हंव कोशिश, मगर बोहा गिस जमों प्रयास।”
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झंगलू हा समझाय बर कहिथय -“”एमां बुजरूक के नइ दोष
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जे मान्यता पूर्व ले आवत, ओहर तुरूत खतम नइ होय।
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भूत प्रेत जादू अउ टोना – एमन मात्र काल्पनिक चीज
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यदि हम इंकर हकीकत कहिबो, हमर बात पर हंसिहंय लोग।
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बैगा तोला टोनहा कहि दिस, मनखे मन कर लिन विश्वास
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धन तो दुधे उहां पर पहुंचिस, वरना तंय खाते कंस मार।”
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“”वाकई मं हम मुंह मं कहिथन – भूत प्रेत बिल्कुल नइ होय
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खुद ला वैज्ञानिक बताय बर, रखथन एक से एक प्रमाण।
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लेकिन मन मं स्वीकारत हन – जग मं होथय प्रेतिन प्रेत
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तंत्र मंत्र जादू अउ टोना, इंकर शक्ति के रहत प्रभाव।”
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एकर बाद गरीबा हेरिस, शुद्ध सोन के चूरा एक
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ओहर झंगलू गुरुला बोलिस -“”मोर बात ला सुन रख ध्यान-
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मोर ददा हा बचा के राखिस, इहिच सोन के चूरा एक
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कतको कष्ट झपैस हमर पर, ओला नइ बेचिस कर टेक।
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ददा किहिस के जब मंय मरिहंव, बेच देबे तंय चूरा मोर
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श्रद्धा संग गत गंगा करबे, तोर उड़ाहय इज्जत – सोर।
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पर चूरा ला तुमला देवत, ले दव पट्टी कलम किताब
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ओला दीन छात्र ला बांटव, ओमन पढ़ लिख शिक्षित होय।
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भूल करंव नइ खात खवई ला, कोन जाय अब तीरथ धाम
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अइसी के तइसी मं जावय – जमों खटकरम गंगा धाम।”
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अतका किहिस गरीबा हा अउ, अपन वचन ला तुरूत निभात
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झंगलू ला चूरा ला देथय – नगदी दान होत महादान।
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झंगलू किहिस -“”होत हे अक्सर – मनखे करत घोषणा बीस
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सत्तर ठक आश्वासन देवत, मदद करे बर अस्वीकार।
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पर तंय लबरा बादर नोहस, जेन बताय करे हस काम
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दीन छात्र मन मदद ला अमरें, पढ़ लिख के बनिंहय गुणवान।”
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झंगलू हा चूरा ला रख लिस, एकर बाद छोड़ दिस ठौर
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अब ओ तन के कथा बतावत, जेतन होत काम हे और।
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सब अतराप के मनखे मन हा, धनवा घर मं जेवन लेत
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बपुरा मन हा सदा भुखर्रा, पर अभि पाय सुघर अक नेत।
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पेट तनत ले झड़किन कोंहकोंह, हिनिन बाद मं धर के राग
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बोकरा के जिव जाथय लेकिन – खबड़ू कथय अलोना साग।
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सोचिन के जब सोनसाय हा, पर धन लूट बनिस धनवान
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हम्मन बढ़िया पांत पाय हन, काबर छोड़न मूर्ख समान!
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यथा सिन्धु के कुछ पानी ला, झटक के खुश हो जथय अकाश
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इसने एमन थोरिक उरका, लेवत बपुरा सुख के सांस।
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मुढ़ीपार के पुसऊ निवासी, बन्दबोड़ रमझू के गांव
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सुन्तापुर के वृद्ध फकीरा, भण्डारा मं भोजन लीन।
 
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15:10, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

किहिस पुरानिक -“”बुरा मान झन – तंय बतात हस बिल्कुल झूठ
ज्ञानिक ग्रंथ जेन ला बोलिन, उंकर तथ्य पर मारत मूठ।
पर तंय हा विद्वान बनस नइ, तंय हमला भरमा झन व्यर्थ
जउन हा सच ते दिखत हे संउहत, कुष्ठ रोग नइ होय समाप्त।”
मंसा अपन तर्क ला रखथय -“”मानव पास शक्ति भण्डार
बात असम्भव रहिथय तेला, संभव बर कर देत प्रयास।
धन हा सम वितरण नइ होवय, रहिथंय दीन धनी इंसान
तीर मं तुक्का लग जावय कहि, करथंय समाजवाद के बात।
कुष्ठ रोग हा अजर अमर हे, ओला खतम करत हे कोन
मगर रोग हा मिट जाये कहि, मनखे सक भर करत प्रयास।
एकर ले नइ होय निराशा, जीवन जियत आस के साथ
दूध समुद्र होय नइ जग मं, तभो ले ओकर पर विश्वास।”
कई ठक तर्क गरीबा रख दिस, तभो वृद्ध मन फांक उड़ैन
ओंड़ा आत पेट हा भर गिस, हाथ अंचोय बर उदिम जमैन।
अन्न के नशा छपाइस तंहने, सोय चहत हें दुनों सियान
बोलत हवय गरीबा टुड़बुड़, पर एमन देवत नइ ध्यान।
सिरिफ गरीबा करत जागरण, ओकर मन मं चलत विचार-
“अब मंय हा मनमरजी करिहंव, भल दुसर बोलंय गद्दार।
सब के मान चलत आवत हंव, लेकिन मिलिस मात्र नुकसान
ओमन चहत गरीबा भागय, बेच के अपने माल मकान।’
मनसे जब निराश हो जाथय, या सब डहर ले दुख – बरसात
ओहर मन मं अनबन सोचत, क्रोध देखात – करत आक्रोश।
कतका बखत आंख हा लग गे, कहां गरीबा जानन पैस!
ओकर सुते आंख खुलथय जब, शासन सुरूज देव के अै स।
लेथय टोह वृद्ध मन कोती, उनकर छैंहा मिल नइ पैस
घर ला जांचिस जहां गरीबा, कतको जिनिस नदारत पैस।
घर ले निकल गरीबा खोजिस, दूनों वृद्ध ला नंगत दूर
लेकिन उंकर मिलिस नइ दउहा, आखिर विवश आत हे लौट।
तभे गुरुझंगलू हा मिल गिस, ओहर रख दिस एक सवाल-
“”तंय फिफियाय हवस का कारण – करत हवस तंय काकर खोज!
मनखे दुख ला कभु बलाय नइ, दुख आ जाथय तब परेशान
तोरो कोई जिनिस गंवा गिस, तभे दिखत अड़बड़ परेशान?”
कथय गरीबा -“”तंय भांपे हस सोला आना ठौंका।
ओकर कतका चर्चा छेड़न इहां रोज दिन घाटा।
मगर रात के घटना ला सुन, अैहन हमर घर दू झन वृद्ध
उनकर नाम पुरानिक मंसा, कुष्ठ रोग के रिहिस मरीज।
ओमन अपन विचार ए राखिन – पुरबल जनम होय जे काम
ओकर फल ए जनम मं पावत, ईश्वर हा देवत हे दण्ड।
पर मंय उंकर बात फांके हंव – कुष्ठ रोग हा दैहिक रोग
खतम करे बर औषधि बन गिस, मोर वाक्य पर कर विश्वास।
पर डोकरा मन अड़बड़ अंड़ियल, कैची अस काटिन सब गोठ
मंय समझाय करे हंव कोशिश, मगर बोहा गिस जमों प्रयास।”
झंगलू हा समझाय बर कहिथय -“”एमां बुजरूक के नइ दोष
जे मान्यता पूर्व ले आवत, ओहर तुरूत खतम नइ होय।
भूत प्रेत जादू अउ टोना – एमन मात्र काल्पनिक चीज
यदि हम इंकर हकीकत कहिबो, हमर बात पर हंसिहंय लोग।
बैगा तोला टोनहा कहि दिस, मनखे मन कर लिन विश्वास
धन तो दुधे उहां पर पहुंचिस, वरना तंय खाते कंस मार।”
“”वाकई मं हम मुंह मं कहिथन – भूत प्रेत बिल्कुल नइ होय
खुद ला वैज्ञानिक बताय बर, रखथन एक से एक प्रमाण।
लेकिन मन मं स्वीकारत हन – जग मं होथय प्रेतिन प्रेत
तंत्र मंत्र जादू अउ टोना, इंकर शक्ति के रहत प्रभाव।”
एकर बाद गरीबा हेरिस, शुद्ध सोन के चूरा एक
ओहर झंगलू गुरुला बोलिस -“”मोर बात ला सुन रख ध्यान-
मोर ददा हा बचा के राखिस, इहिच सोन के चूरा एक
कतको कष्ट झपैस हमर पर, ओला नइ बेचिस कर टेक।
ददा किहिस के जब मंय मरिहंव, बेच देबे तंय चूरा मोर
श्रद्धा संग गत गंगा करबे, तोर उड़ाहय इज्जत – सोर।
पर चूरा ला तुमला देवत, ले दव पट्टी कलम किताब
ओला दीन छात्र ला बांटव, ओमन पढ़ लिख शिक्षित होय।
भूल करंव नइ खात खवई ला, कोन जाय अब तीरथ धाम
अइसी के तइसी मं जावय – जमों खटकरम गंगा धाम।”
अतका किहिस गरीबा हा अउ, अपन वचन ला तुरूत निभात
झंगलू ला चूरा ला देथय – नगदी दान होत महादान।
झंगलू किहिस -“”होत हे अक्सर – मनखे करत घोषणा बीस
सत्तर ठक आश्वासन देवत, मदद करे बर अस्वीकार।
पर तंय लबरा बादर नोहस, जेन बताय करे हस काम
दीन छात्र मन मदद ला अमरें, पढ़ लिख के बनिंहय गुणवान।”
झंगलू हा चूरा ला रख लिस, एकर बाद छोड़ दिस ठौर
अब ओ तन के कथा बतावत, जेतन होत काम हे और।
सब अतराप के मनखे मन हा, धनवा घर मं जेवन लेत
बपुरा मन हा सदा भुखर्रा, पर अभि पाय सुघर अक नेत।
पेट तनत ले झड़किन कोंहकोंह, हिनिन बाद मं धर के राग
बोकरा के जिव जाथय लेकिन – खबड़ू कथय अलोना साग।
सोचिन के जब सोनसाय हा, पर धन लूट बनिस धनवान
हम्मन बढ़िया पांत पाय हन, काबर छोड़न मूर्ख समान!
यथा सिन्धु के कुछ पानी ला, झटक के खुश हो जथय अकाश
इसने एमन थोरिक उरका, लेवत बपुरा सुख के सांस।
मुढ़ीपार के पुसऊ निवासी, बन्दबोड़ रमझू के गांव
सुन्तापुर के वृद्ध फकीरा, भण्डारा मं भोजन लीन।