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गरीबा / लाखड़ी पांत / पृष्ठ - 4 / नूतन प्रसाद शर्मा

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पल – पल बढ़त रात के फंदा, बाहिर नइ निकलत इन्सान
अपन प्रथम पारी निपटा लिस, कर अवाज कोलिहा परधान।
बिरबिट करिया चारों मुंहड़ा, डर मं सांय सांय अतराप
दूझन जीव गाँव ले निकले, सुद्धू अउ धनवा के बाप।
जे मनसे के नींद हा परगे, सपना मं डर के बर्रात
ओकर तिर मं एकोझन नइ, मगर झझक का का गोठियात।
बहुरा डर मं दुबक के सोये, भूंकिन कुकुर खूब ए बीच
हवलदार बुतकू केंवरी ला, बहुरा हा कर दीस सचेत-
“”टोनही मन हा मंतर मारिन, सोनू सुद्धू पर अजमैन
ओमन ला फिर जीवित कर दिन, धर लिन दुनों कुकुर के रूप
ओमन ला भगाय झन सोचव, तुम झन निकलव बाहिर पार
अगर बात के करत उदेली, तुम पर आहय बड़े बवाल –
सोनू अउ सुद्धू दूनों मिल, रूप बदल के बनिहंय बाघ
तुम्हर प्राण लेहंय थपोल झड़, तंहने बाद मं खाहीं मांस।”
सोय झड़ी हा ओढ़ के चद्दर टकटक देखत आंखी।
ओहर भय मं लद लद कांपत चुप हे मुंह के बोली।
तभे सामने ओहर देखिस – ललिया आंख खड़े सोनसाय
झड़ी कठिन मं बक्का फोरिस -“”मालिक, तोर सदा मंय दास।
बइठक अउ पंचायत होइस, तोर पक्ष मंय भिड़ के लेंव
तोर ले निहू रेहेंव हमेशा, तोर विरूद्ध कभू नइ गेंव।
धनवा ले बाढ़ी मांगे हंव, ओकर ऋण बइठे मुड़ मोर
मंय हा ओला खतम पटाहंव, मोला जिये के अवसर देव।”
थोरिक बाद झड़ी हा देखिस, आगू कोती आंख नटेर
मगर उहां पर एको झन नइ, वातावरण हवय सिमसाम।
ओढ़िस झड़ी हा तुरते चद्दर, मुड़ ले गोड़ रखे हे ढांक
मन मन मं प्रार्थना करत हे – हे प्रभु, बचा मोर अब जान।”
भगवानी तक डर मं कांपत, आगू तन देखत टक एक
तभे एक ठक आकृति उभरिस – सुद्धू खड़े हवय भर क्रोध।
भगवानी रोनहू बन बोलिस -“”लड़िन गरीबा अउ धनसाय
तंहा गरीबा फंस जावय कहि, मंय हा देंव गवाही झूठ।
मंय हा गल्ती गजब करे हंव, पर ए डहर भूल नइ होय
हाथ जोड़ के माफी मांगत, मोर कुजानिक ला कर माफ।”
लघु शंका बर निकल पात नइ, मुश्किल होत रूके बर वेग
तब ले मनखे सुतत कलेचुप-मुड़ ऊपर चद्दर ला लेग।
दू झन वृद्ध गांव मं पहुंचिन, दीन अवाज मंगे बर भीख-
“”हम भिक्षुक अन – भूख मरत हन, हमला देव खाय बर भात।”
उंकर अवाज ला गुहा हा सुन लिस, तंह कैना ला करिस सचेत –
“”सोनू अउ सुद्धू एं एमन, धमकिन इहां बदल के रूप।
ओमन अब बन गीन भिखारी, मांगत भीख गली हर द्वार
भिक्षा दान करे बर जाबो, ओमन हमला दिहीं दबोच।
मरघट तक ले जाहंय झींकत, जिंहा अभी के उंकर निवास
पुनऊ थुकेल झझक झन जावंय, दूनों ला रख बने सम्हाल”
हम कतको शिक्षित ज्ञानिक हन, पर मजबूत अंधविश्वास
जलगस नइ विज्ञान के शिक्षा, छू मंतर नइ भ्रम के भूत।
हर दरवाजा गीन वृद्ध मन, पर कड़कड़ ले बंद किवाड़
भूख मं आंटीपोटा बइठत, कंस करलावत इनकर जीव।
आखिर एक मकान पास गिन, बइठ गीन होके लस पश्त
बुड़ुर बुड़ुर का का गोठियावत, एक दुसर के बांटत कष्ट।
जब देखिन अब जीव हा छूटत, मुंह ला फार दीन आवाज-
“”मंगन मन ला देव खाय बर, वरना पटिया मरबो आज।”
बेंस खोल के अैनस गरीबा, पूछिस -“”रथव कते तुम गांव
परगे बिपत का बोम मचावत, जाय चहत हव काकर छांव?”
उनकर हाल गरीबा देखिस -“”अंधरा एक – दुसर विकलांग
कुष्ट रोग हा छाय दुनों पर, घिनघिन कपड़ा लटके देह।
अंधरा हवय जेन डोकरा हा, अपन रखे हे “मंसा’ नाम
जेन वृद्ध टेंग टेंग लंगड़ावत, ओकर नाम “पुरानिक’ जान।
किहिस पुरानिक -“”हम मंगन अन, कंगलई करत हमर पर राज
मुंह चोपियात पिये बिन पानी, पेट हा कलपत बिगर अनाज।”
लाला लपटी देख गरीबा, दया देखात – मरत हे सोग
पर सुद्धू मरगे तेकर बर, काठी छुआ अशुद्ध समान।
शंका ला सुन मंसा बोलिस -“”अपन चोचला रख खुद पास
शुद्ध अशुद्ध ला हम नइ मानन, काठी छुआ ला रखथन दूर।
एला अगर मान्यता देबो, ककरो इहां सकन नइ खान
तब तो हमर जीव तक जाहय, तन असक्त पर बहुत अजार।
जे सम्पन्न शक्ति धर – सक्षम, चलथय नियम धियम ला मान
उंकर बुराई कोन हा करही, बेर हा हरदम बर बेदाग।”
अंदर लान सियनहा मन ला दीस गरीबा बासी।
दूसर मन दुत्कारिन लेकिन खुद काबर दे फांसी।
बड़े कौर धर खात वृद्ध मन, कभू खाय नइ तइसे लेत
बुड़त सइकमा मं डाढ़ी हा, तेकर घलो कहां कुछ चेत!
कथय गरीबा -“”देव ज्वाप तुम – काबर किंजरत पर के द्वार
तुम्हर सहायक जेन व्यक्ति हे, का कारण उठाय नइ भार।?”
किहिस पुरानिक -“”का बतान हम – यद्यपि हवंय हमर संतान
लेकिन कुष्ट रोग के कारण, करथंय घृणा-भगावत दूर।
पुरबल कमई के कारण हमला, घृणित रोग हा सपड़ा लीस
हम ए बखत रतेन निज छंइहा, किंजर के खोजत बासी – छांय।”
किहिस गरीबा -“”कोन हा कहिथय, पाप के कारण कुष्ठ अजार
भ्रम के बात कभू झन मानो, एकर होथय खुंटीउजार।
कुष्ठ रोग ला खतम करे बर, निकल गे हावय दवई प्रसिद्ध
ओकर सेवन करो नियम कर, तंहने तन हो जहय निरोग।”