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"गरीबा / लाखड़ी पांत / पृष्ठ - 12 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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15:18, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

सब ग्रामीण उसल के रेंगिन, नौकर मन अब काम बजात
धनवा – छेरकू मुड़ ला जुरिया, गुरतुर गुरतुर बात चलात।
धनवा कहिथय – “कृपा करे हस, तेकर कर्ज होय नइ गोल
लेकिन छुपे रहस्य ला फुरिया, लुका राख झन हृदय के खोल।
नौकर मन के मांग ला ठुकरा, मंदिर ला बनाय कहि देस
दुनों बात मं तालमेल नइ, तब ले तंय हा एक करेस?”
छेरकू अपन जहर ला बिखनिस – “कूटनीति के तंय रख ज्ञान
अगर टिंया तक राज चहत हस, जनता संग कर छल बल तान।
मंदिर मठ ला बनवा के हम, लूट सकत हन धर्म के आड़
ईश्वर – नाम मं डरा भुताबो, नवही लोहा लाट अछाड़।
नौकर मन अंटियात रिहिन अउ, करत रिहिन सुंट बंध हड़ताल
मगर धर्म के नाम मं चमकिन, अपन हाथ नीछिन खुद खाल।
काम बजाहंय रटाटोर अब, नइ बइठंय एको छन धीर
बइला ला जहं परत तुतारी, मेड़ फोर चलथय तरमीर।
अगर श्रमिक के मांग पुरोते, अउ खई मंगतिन मुंह ला फार
इसने उनकर मान करत मं, तोर जमों धन होतिस ख्वार।
इंकर भरोसा – मार परोसा, बस तंय फइलावत रह भ्रांति
श्रमिक ला जेवा कमती कमती, भोंक मं जाहय उनकर क्रांति।”
धनवा बोलिस – “नीतिवान तुम, मोर पास हे बुद्धि – अभाव
ज्ञानिक संग फुल फुलवारी बद, आज लेंव मंय नीति रपोट।
यदि मंय तोर मदद ले वंचित, मंय रहि जातेंव दांत निपोर
नंगरा तक बुढ़ना झर्रातिस, गांव के दुश्मन हंसतिस खोर।”
मंत्री पास काम कतको ठक-तुरते रेंगिस छेरकू।
कोदई ला निकियाथय ते बेरा – छंटिया जाथय मेरखू।
भुखू सुखी मन करिन दलाली, तब धनवा हा बांटिस नोट
डकहर सुखी भुखू तीनों मिल, अभिन जमात कार्यक्रम मोठ।
बोलिस सुखी – “लोग मन कहिथंय – होत मंद हा बहुत खराब
ओकर पिये मं बहुत बुराई, मनखे के जीवन बर्बाद।
तब वास्तव मं काय बुराई, लेन परीक्षा ढोंक शराब
फेर मंद मं जेन बुराई, मनखे मन ला करन सचेत।”
तीनों झन खलखला के हांसिन, भिड़ के पीयत खूब शराब
नशा बढ़त गनगना के तंहने, उंकर चेत हा होत बिचेत।
आंख के पुतरी ऊपर जावत, लड़भड़ लटकत उंकर जबान
काय बकत तेकर सुरता नइ, भुला गीन इज्जत अपमान।
भुखू लड़भड़ा उठ जाथय अउ, छुअत हवय डकहर के गोड़
डकहर कथय -“कलंक लगा झन, गोड़ छोड़ भइ-छोड़ तंय गोड़।”
काबर सुनय भुखू मंदी हा, कोन जनी का का तोतरात
आखिर ओ – ओ उल्टी कर दिस, मन्दी के गुन ला ओरियात।
भुखू खूब चलना चाहत – पर, भुंइया मं भर्रस गिर गीस
जेन जगह उछरे हे छर छर, ओकरे ऊपर पटिया गीस।
डकहर ला अब सुखी हा बोलिस – “अब तो भुखू के उड़गे चेत
मंद ढोकम के पशु अस सोवत, धर चेचकार – खार मं फेंक।”
डकहर हा छिनमिना के कहिथय – “बहुत हुलास देत हे यार
हमर नाक हा सूंघ पात नइ, नर्क कुण्ड ले तिंहिच उबार।
जमों मंद ला भुखू ढोंक दिस, सुध बुध खो के शव अस सोय
हम तंय पाय मंद एक एक कन, तब तो नशा कुछुच नइ होय।”
सुखी किहिस – “तंय चिंता झन कर, बचे मंद अउ बोतल एक
ओहर नंगत नशा बताहय, ओला थोरिक पी के देख।”
कभू पिये नइ तइसे ढक ढक, दारुढारिन रख के ग्लास
पिये – बाद मं नशा जनावत, काय करत तेकर नइ भास।
मंदबसी मं कहिथय डकहर – “मोला तंय दुर्बल झन जान
अगर शक्ति ला अजमे चाहत, बला लान एक अड़िल जवान।
कतको अखरा जानत होहय, तब ले मंय करिहंव मलयुद्ध
टंगड़ी मार – गिरा धरती पर, ओकर वक्ष मं चढ़हूँ कूद।”
सुखी हा काबर पिछू रहय अब, बात मं बढ़ गिस बार हाथ –
“असली रूप मोर नइ जानस, चल तंय अभिच सुखी के साथ।
मोर शक्ति जाँचे चाहत तब, पंड़वा एक खोज के लान
रद्दा मार के केंघरा ओला, नाथ दुहूं मंय धर के कान।”
अतका बोल सुखी हा खींचिस, डकहर के दू कान ला जोर
तंहने डकहर हा खखुवा के, सुखी ला रचका दिस पंचलोर।
भड़किस – “मोला तंय का समझत, तोर ले मंय हा धनी सजोर
तोर असन ला बिसा सकत हंव, जेमां करत हवस सिरजोर।
मुंह करिया कर रेंग इहां ले, वरना बिगड़ जहय संबंध
कर हुरमुठी कुकुर अस रूकबे, झड़का दुहूं गिन के दस लात।”
सुखी अकबका फुसफुस रोवत, ढलंग गे भुंइया पटकत गोड़
आंसू ढार कल्हर मिमियावत – “तोला छोड़ कहां मंय जांव!
भले पेट मं छुरी भोंक दस, चिल कौंवा के जे बर छोड़
पर तन रहत मुहूँ नइ टारों, तोर मित्र के बस ए टेक।”
डकहर ला आ गीस दया अब, कलप के ढारत आंसू धार-
“”गल्ती ला तंय क्षमा दान कर, बल्दा मं फटकार ले लात।
मंय हा रखत शत्रुता पर तंय मित्र मानथस मोला।
लेकिन आज तोर संग झगरत – कइसे होगे मोला।
डकहर सुखी के नश््शा भड़कत, का डम्फाएन के नइ चेत
दूनों एक दूसर ला कबिया, करत हवंय समधी अस भेंट।
उनकर आंसू गिरत टपाटप, कलपत खूब गला ला फाड़
दृष्य उहां के अइसन दिखथय – करूण हास्य रस सौंहत ठाड़।
बहुत समय इसने बीतिस तंह, भुखू जाग के जांचत हाल
दूनों ला हांसत हे मानो – खरी खाय नइ एकर चाल।
जहां कुकर्मी फरी हो जाथय, पर ला देत ज्ञान उपदेश
भुखू दुनों ला पहिली डांटिस, करत हे अब शिक्षा के दान –