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गरीबा / लाखड़ी पांत / पृष्ठ - 11 / नूतन प्रसाद शर्मा

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धनवा के तुम पांव छुएव तब, अपन मांग नइ राखेव कार
मगर काम के गाड़ा रूकगे, थोथना ला ओरमात दड़ांग!
मन के अंदर सत्य सोच लव, करिहव झन पाछू बदनाम
देव – काम मं विध्न करत हव, चुमुक ले बुत जाहय सब नाम।”
”ईश्वर हा बनाय हे जग ला, जानत सबके हृदय के बात
ओहर रखे तभे फूलत हन, तोप रखे सबके मरजाद।”
अतका बोल कथय अउ फेंकन -”तुम बइठे हव तज के काम
एकर तुमला दुष्फल मिलिहय, दैविक सजा हे ओकर नाम।”
“ईश्वर से झन द्रोह करव तुम, वरना मिलिहय दुष्परिणाम
तुम्हर पिला पर पाप उतरिहय, चुहक पाव नइ सुख के आम।”
झड़ी के बात सुनिन नौकर – डर मं कांपत जस पाना।
मुड़ ला निहरा दुबक के मानों चहत जान हा जाना।
हंफरत हें – मुंह गोठ ढिलत नइ, उंकर करत नइ अक्कल काट
ईश्वर ला मनाय नौकर मन, बदना बदत हवंय प्रण ठान।
फूलबती हा कांप के कहिथय – “हम जावत हन बारा बाट
हे प्रभु, हमला तिंही बचा अब, हमर कुजानिक ला कर माफ।”
हगरू कथय- “कराहंव पूजा, भले खर्च लग जावय तान
एकर ले मन शांति पा जाहय, जमों कष्ट के बिन्द्राबिनास”
कातिक हा प्रण ठान के बोलिस- “मंय कर लेंव भयंकर पाप
एकर प्रायश्चित ला करहूं, मंय खुद ला देहंव तकलीफ।
“सोला सम्मारी’ जे होथय, निश्चय रहिहंव उही उपास
एकर ले सब कष्ट नंदाहय, धनवा तक कर देही माफ।”
टहलू कथय- “जंवारा बोहंव, भले खर्च मं घर बिक जाय
मोर खेत हा हाथ ले निकलय, पर संकल्प हा खत्तम पूर्ण।
तहां बाद मं देवता छाहित, घर खेती आ जाहय लौट
ईश्वर पहिली लेत परीक्षा, तंहने देवत सुख आनंद।”
कथय बोधनी हा टहलु ला- “मंय हा तोर छांय अस आंव
तंय हा धार्मिक काम उचाबे, मंय बनहूं सहभागी तोर।
तंय हा जभे “जंवारा’ बोबे, ठंडा करे के जभ्भे टेम
“जोत जंवारा’ ला मुड़ पर रख, हलू चलत मंय जाहंव ताल।”
पोखन घलो अपन ला फोरिस- “मंहू दुहूं सब झन ला साथ
लोहा के जे होत खड़ौवा, ओकर पर चढ़ चलिहंव चाल।
लोहा के खीला मन चुभहीं, दर्द भयंकर-बहही खून
लेकिन मंय चिंता ले दुरिहा, आगू बर बढ़ जाहय पांव।
दैविक कारज मं ए होथय- पहिली तुमन परीक्षा देव
तंहने देव प्रसन्न हो जाथय-तब फिर मिलत सुखद परिणाम।”
डकहर पैस टेम सुघ्घर अक, नौकर मन ला करिस सचेत-
“तुम्मन सरल ह्रदय के मनखे, अपन काम पर रखत इमान।
लेकिन अब का भूत पकड़ लिस-बन के उग्र करत हड़ताल
रेंगत राह गलत निर्णय कर, आखिर कते जीव उभरैस?”
कातिक अपन पोल ला खोलिस- “हम धनवा के नौकर आन
काम करत पीढ़ी दर पीढ़ी, मानत आत जमों आदेश।
क्रांति काय तेला नइ जानन, हम संघर्ष ले हन अनजान
खूब लड़ंका हगरू टहलू, उहिच दुनों हमला बहकैन।”
टहलू हा सब तर्क ला कोटिस- “कातिक हा बोलत हे झूठ
खुद ला बिल्कुल साफ करे बर, दूसर पर डारत आरोप।
ओहर दीस उग्र भाषण अउ, धनवा के विरूद्ध भड़कैस
याने जमों दोष कातिक के, हम निर्मल जल अस निर्दाेष।”
नौकर मन मं फूट परे हे, एक दुसर पर डारत दोष
क्रांति करे बर राजू तिनकर, चुपेचाप भगगे सब रोष।
केजा हा अब थाह लगावत, नौकर मन ले मंगत जुवाप
“खुद ला सब साऊ बतात हव, पर वास्तव मं सब पर दोष।
पर गल्ती ला माफ करत हन, अब बिल्कुल सच उत्तर देव-
तुम हड़ताल अभी टोरत हव, या फिर क्रांति बढ़ावत और?”
मुंह रोनहू कर टहलू बोलिस- “उभरउनी मं आयेन आज
हम पापी मन चलत कुरद्दा, हमर कुजानिक ला कर माफ।
धर्म अधर्म कुछुच नइ जानन, अकल पुरिस नइ तुम्हर अतेक
हम्मन आय तुम्हर कोरा मं, पत ला रख दो इहां जतेक।
धनवा के घर काम बजाबो, नइ लगान हड़ताल के आग
मन्दिर ला हम खुद सिरजाबो, अपन मांग पर मांगत रोक।”
सब नौकर मन शरण गिरिन-पर, धनसहाय टरका दिस कान
ऊपर ले सेखी मं अंइठत, मुंह ले छोड़त करू जबान-
“नौकर मन ला मंय अपना के, कइसे करंव अधर्म के काम!
ईश्वर साथ द्रोह यदि फांदत, मिल नइ पाय शांति आराम।”
ग्राम के वासी मन समझावत, धनवा नइ लेवत कल्दास
डायल बइला हा कर देथय, कृषक के मन ला खूब हताश।
आखिर मं छेरकू पुचकारिस- “सुन धनवा तंय नेक सलाह
इंकर कुजानिक ला समोख अब, तभे ठीक होहय निर्वाह।
पाल श्रमिक ला बन के घुरूवा, यद्यपि चाबिन बन के नांग
पिला, ददा पर गंदला करथय, पर नइ कटय पुत्र के जांग।”
बड़ मुशकिल मं मुड़ी उठा के धनवा बोलिस ऐसे-
“गंगा-बीच बइठ के एक झन करंव उदेली कैसे?
नौकर के मानी तुम पीयत, मोर गोहार घलो सुन लेव-
जतका अभि मजदूरी नापत, ओकर ले ऊपर नइ देंव।”
छेरकू हांक बजा के बोलिस- “सुनव गांव के श्रमिक किसान
धनवा ला मंय मना डरे हंव, एकर झन करिहव हिनमान।
टिंया ले सुंट बंध आवत तइसे, जुरमिल रहव इहिच विश्वास
आंटाटिर्रा छोड़ देव तुम, तंहने खतम फूट के बास।
चुगली भेद ला गोरसी भर दव, आपुस रखव मित्रता नेम
मोर कुजानिक क्षमा देव तुम, तुम्हर खाय मंय किमती टेम।”