"गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 19 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
}} | }} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | क्रांति प्रकाशन हवय एक ठन, क्रांति हवय मालिक के नाम | |
− | + | ओहर पत्र मोर तिर भेजिस – तंय हा रचना लिख धुआंधार। | |
− | + | पूर्ण होय तंह भेज पाण्डुलिपि, ओला मंय हा देहंव मान | |
− | + | सबले पूर्व प्रकाशित करिहंव, मंय देवत हंव सत्य जबान।” | |
− | + | अतका बोल किहिस अउ मेहरु-”दीस भरोसा क्रांति हा जेन | |
− | + | पुस्तक मोर प्रकाशित होहय, पर नइ पाय झूठ के वार।” | |
− | + | मेहरुबहल बात ला छेंकिन, अउ “दरबार हाल’ मं गीन | |
− | + | लेखक मन तिर एमन अमरिन, अपन अपन परिचय ला दीन। | |
− | मोर | + | उहां मिलापा दानी सन्तू, छन्नू ढेला साथ बिटान |
− | + | सातो बइसाखू परसादी, हवंय काव्य के गुणी अनेक। | |
− | + | दानी टेस बतावत जेकर रुतबा सब ले ऊंचा। | |
− | + | दूसर लेखक हवंय निहू अस – छरकत पूरा घूंचा। | |
− | + | जहां कार्यक्रम के हल रेंगिस, दानी कथय -”मित्र सुन लेव | |
− | + | आज जगत मं बहुत समस्या, ओकर पर कइ ठक तकलीफ। | |
− | + | तुम्मन बुद्धिमान मनखे अव, देव समस्या ऊपर ध्यान | |
− | + | जेन विषय पर सोच डरे हव, ओला इहां राख दव खोल।” | |
− | + | सन्तू कथय -”रखे बर चाहत – विश्व शांति पर ठोस विचार | |
− | + | बम घातक हथियार बने हें, उंकर होय अब खुंटीउजार। | |
− | + | छोटे राष्ट्र देश बड़का हें, ओमन भुला जांय सब भेद | |
− | + | बड़े पलोंदी दे नान्हे ला, सग भाई अस राखंय प्रेम” | |
− | + | मेहरुकिहिस – “करंव नइ चिकचिक, मगर मोर बस इही सलाह- | |
− | + | “यथा बाग मं फूल बहुत ठक, एक साथ खिल पात पनाह। | |
− | + | इसने साहित्यिक बगिया मं, जमों विधा मन भोगंय राज | |
− | + | पावंय मान पाठ्य पुस्तक मं, शहराती ग्रामीण समाज।” | |
− | + | सातो कथय -”जगत सब बर हे, सब प्राणी हें एक समान | |
− | + | मानव पशु पक्षी अउ कीरा, सब के देह एक ठन जान। | |
− | + | कोई ककरो करय न हत्या, दूतर ला झन बांटय पीर | |
− | + | मानव सबले बुद्धिमान हे, तब दूसर के जान बचाय।” | |
− | + | लेखक मन हा सुन्ता बांधिन, दानी ला अध्यक्ष बनैन | |
− | + | उहां जतिक अस नगरीय लेखक, लेखकसंघ के पद ला पैन। | |
− | + | मेहरु बहल गांव के लेखक, भतबहिरा अस पद नइ पैन | |
− | + | यद्यपि एमन तर्क ला राखिन, लेकिन चलन पैस नइ टेक। | |
− | + | मेहरुकिहिस -”लेख मं देथव – जम्मों झन ला सम अधिकार | |
− | + | लेखक संघ मं भेद रखत हव, हमला खेदत हव चेचकार। | |
− | + | गांव के अन्न शहर मं जाथय, शहर गांव ला देत समान | |
− | + | उसने शहराती देहाती, आपुस मं बांटंय पद मान।” | |
− | + | एकर बाद खाय बर बइठिन, बंटिस उहां पर खाद्य पदार्थ | |
− | + | एमां सब ला मिलिस बरोबर, होइस पूर्ण सबो के स्वार्थ। | |
− | + | बहल हंसत मेहरुला बोलिस – “लेखक संघ के बैठक होय | |
− | + | हमर पुकार भले झन होवय, लेकिन पहुंच जबो हम दोंय।” | |
− | + | मेहरुखुलखुल हांसत बोलिस – “मिलिस खाय बर स्वादिल चीज | |
− | + | तेकर लालच तोला धरलिस, तब आबे का बिगर बलाय?” | |
− | + | “हम्मन हा यदि सरलग आबो, लेखक संघ हा करिहय पूछ | |
− | + | खूब अंटा के डोरी बनथय, अलग अलग जे नरियर बूच।” | |
− | + | एकर बाद रात करिया गिस, तंहने होइस नाटक एक | |
− | + | “दयामृत्यु’ नाटक के नामे, लेखक ए सुरेश सर्वेद। | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | गांव | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | लेकिन हम | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
</poem> | </poem> |
16:47, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
क्रांति प्रकाशन हवय एक ठन, क्रांति हवय मालिक के नाम
ओहर पत्र मोर तिर भेजिस – तंय हा रचना लिख धुआंधार।
पूर्ण होय तंह भेज पाण्डुलिपि, ओला मंय हा देहंव मान
सबले पूर्व प्रकाशित करिहंव, मंय देवत हंव सत्य जबान।”
अतका बोल किहिस अउ मेहरु-”दीस भरोसा क्रांति हा जेन
पुस्तक मोर प्रकाशित होहय, पर नइ पाय झूठ के वार।”
मेहरुबहल बात ला छेंकिन, अउ “दरबार हाल’ मं गीन
लेखक मन तिर एमन अमरिन, अपन अपन परिचय ला दीन।
उहां मिलापा दानी सन्तू, छन्नू ढेला साथ बिटान
सातो बइसाखू परसादी, हवंय काव्य के गुणी अनेक।
दानी टेस बतावत जेकर रुतबा सब ले ऊंचा।
दूसर लेखक हवंय निहू अस – छरकत पूरा घूंचा।
जहां कार्यक्रम के हल रेंगिस, दानी कथय -”मित्र सुन लेव
आज जगत मं बहुत समस्या, ओकर पर कइ ठक तकलीफ।
तुम्मन बुद्धिमान मनखे अव, देव समस्या ऊपर ध्यान
जेन विषय पर सोच डरे हव, ओला इहां राख दव खोल।”
सन्तू कथय -”रखे बर चाहत – विश्व शांति पर ठोस विचार
बम घातक हथियार बने हें, उंकर होय अब खुंटीउजार।
छोटे राष्ट्र देश बड़का हें, ओमन भुला जांय सब भेद
बड़े पलोंदी दे नान्हे ला, सग भाई अस राखंय प्रेम”
मेहरुकिहिस – “करंव नइ चिकचिक, मगर मोर बस इही सलाह-
“यथा बाग मं फूल बहुत ठक, एक साथ खिल पात पनाह।
इसने साहित्यिक बगिया मं, जमों विधा मन भोगंय राज
पावंय मान पाठ्य पुस्तक मं, शहराती ग्रामीण समाज।”
सातो कथय -”जगत सब बर हे, सब प्राणी हें एक समान
मानव पशु पक्षी अउ कीरा, सब के देह एक ठन जान।
कोई ककरो करय न हत्या, दूतर ला झन बांटय पीर
मानव सबले बुद्धिमान हे, तब दूसर के जान बचाय।”
लेखक मन हा सुन्ता बांधिन, दानी ला अध्यक्ष बनैन
उहां जतिक अस नगरीय लेखक, लेखकसंघ के पद ला पैन।
मेहरु बहल गांव के लेखक, भतबहिरा अस पद नइ पैन
यद्यपि एमन तर्क ला राखिन, लेकिन चलन पैस नइ टेक।
मेहरुकिहिस -”लेख मं देथव – जम्मों झन ला सम अधिकार
लेखक संघ मं भेद रखत हव, हमला खेदत हव चेचकार।
गांव के अन्न शहर मं जाथय, शहर गांव ला देत समान
उसने शहराती देहाती, आपुस मं बांटंय पद मान।”
एकर बाद खाय बर बइठिन, बंटिस उहां पर खाद्य पदार्थ
एमां सब ला मिलिस बरोबर, होइस पूर्ण सबो के स्वार्थ।
बहल हंसत मेहरुला बोलिस – “लेखक संघ के बैठक होय
हमर पुकार भले झन होवय, लेकिन पहुंच जबो हम दोंय।”
मेहरुखुलखुल हांसत बोलिस – “मिलिस खाय बर स्वादिल चीज
तेकर लालच तोला धरलिस, तब आबे का बिगर बलाय?”
“हम्मन हा यदि सरलग आबो, लेखक संघ हा करिहय पूछ
खूब अंटा के डोरी बनथय, अलग अलग जे नरियर बूच।”
एकर बाद रात करिया गिस, तंहने होइस नाटक एक
“दयामृत्यु’ नाटक के नामे, लेखक ए सुरेश सर्वेद।