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"गरीबा / तिली पांत / पृष्ठ - 19 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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फसल होय झन होय तभो ले, निष्फलता के अर्थ लगात।
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क्रांति प्रकाशन हवय एक ठन, क्रांति हवय मालिक के नाम
दीन हीन लघु पद देहाती, एमन करत ठोसलग काम
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ओहर पत्र मोर तिर भेजिस – तंय हा रचना लिख धुआंधार।
मगर इंकर तारीफ होय नइ, निंदा तक बर आवत लाज।”
+
पूर्ण होय तंह भेज पाण्डुलिपि, ओला मंय हा देहंव मान
मेहरुबोलिस “ठीक कहत हस, अब सवाल के उत्तर लान –
+
सबले पूर्व प्रकाशित करिहंव, मंय देवत हंव सत्य जबान।”
रिहिस रायपुर मं कई बूता, तब तंय उहां कोन दिन गेस!
+
अतका बोल किहिस अउ मेहरु-”दीस भरोसा क्रांति हा जेन
टी। वी। अउ अकाशवाणी मं, तोर जाय के रिहिस विचार
+
पुस्तक मोर प्रकाशित होहय, पर नइ पाय झूठ के वार।”
उहां तोर का बूता निपटिस, होगिस का पूरा उद्देश्य?”
+
मेहरुबहल बात ला छेंकिन, अउ “दरबार हाल’ मं गीन
बहल किहिस – “मंय गांव मं रहिथंव, तंहू करत हस गांव निवास
+
लेखक मन तिर एमन अमरिन, अपन अपन परिचय ला दीन।
मोर व्यथा ला तंय हा सुनबे, अतका असन रखत विश्वास-
+
उहां मिलापा दानी सन्तू, छन्नू ढेला साथ बिटान
हंसिया श्रमिक कमावत खेती, पर भरपेट अन्न नइ पाय
+
सातो बइसाखू परसादी, हवंय काव्य के गुणी अनेक।
हम्मन गंवई मं बसथन तब तो, साहित्य मं बुझावत नाम।
+
दानी टेस बतावत जेकर रुतबा सब ले ऊंचा।
लकर धकर मंय गेंव रायपुर, रचना धर साहित्यिक काम
+
दूसर लेखक हवंय निहू अस छरकत पूरा घूंचा।
लेकिन उहां पूछ नइ होइस, अउ उपरहा कटागे नाक।
+
जहां कार्यक्रम के हल रेंगिस, दानी कथय -”मित्र सुन लेव
मंय अकाशवाणी तिर ठाढ़े, अंदर जाय रुकत हे पांव
+
आज जगत मं बहुत समस्या, ओकर पर कइ ठक तकलीफ।
केन्द्र के रुतबा अड़बड़ होथय, तभे सुकुड़दुम मन डर्रात।
+
तुम्मन बुद्धिमान मनखे अव, देव समस्या ऊपर ध्यान
मोला लड्डू भृत्य हा मिलगे, उही हा देइस नेक सलाह
+
जेन विषय पर सोच डरे हव, ओला इहां राख दव खोल।”
“तंय अधिकारी तिर जा निश्चय, बात बोल मंदरस अस मीठ।
+
सन्तू कथय -”रखे बर चाहत – विश्व शांति पर ठोस विचार
कहिबे -”निहू पदी दिन काटत, टीमटाम ले रहिथंव दूर
+
बम घातक हथियार बने हें, उंकर होय अब खुंटीउजार।
इहां लड़े बर नइ आए हंव, सिरिफ सधाहंव खुद के काम।”
+
छोटे राष्ट्र देश बड़का हें, ओमन भुला जांय सब भेद
कार्यालय मं पहुंच गेंव मंय, मन ला करके पक्का।
+
बड़े पलोंदी दे नान्हे ला, सग भाई अस राखंय प्रेम”
देख कार्यक्रम अधिधाशी हा, मारिस बात के धक्का।
+
मेहरुकिहिस – “करंव नइ चिकचिक, मगर मोर बस इही सलाह-
“जनम के कोंदा अस तंय लगथस, तब बक खाके देखत मात्र
+
“यथा बाग मं फूल बहुत ठक, एक साथ खिल पात पनाह।
का विचार पहुंचे हस काबर, कुछ तो बोल भला इंसान?”
+
इसने साहित्यिक बगिया मं, जमों विधा मन भोगंय राज
ऊपर ले खाल्हे तक घुरिया, साहब ढिलिस व्यंग्य के बाण
+
पावंय मान पाठ्य पुस्तक मं, शहराती ग्रामीण समाज।”
लेकिन मंय हा सिकुड़ खड़े बस – सांवा बीच मं कंपसत धान।
+
सातो कथय -”जगत सब बर हे, सब प्राणी हें एक समान
मंय बोलेव – “रहत हंव मंय हा, अटल गंवई हे गोदरी गांव
+
मानव पशु पक्षी अउ कीरा, सब के देह एक ठन जान।
कृषक श्रमिक अउ गांव संबंधित, तुम्हर पास रचना ला लाय।
+
कोई ककरो करय न हत्या, दूतर ला झन बांटय पीर
पहिली भेजे हंव रचना कइ, मगर मुड़ा नइ गीस जवाब
+
मानव सबले बुद्धिमान हे, तब दूसर के जान बचाय।”
तब मंय हार इहां आए हंव, मोर प्रार्थना सुन लव आप –
+
लेखक मन हा सुन्ता बांधिन, दानी ला अध्यक्ष बनैन
आकाशवाणी ले चाहत हंव, अपन नाम सब तन बगराय
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उहां जतिक अस नगरीय लेखक, लेखकसंघ के पद ला पैन।
बिन प्रचार उदगरना मुस्कुल, करिहव कृपा मथत मंय आय।”
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मेहरु बहल गांव के लेखक, भतबहिरा अस पद नइ पैन
साहब हा बरनिया के बोलिस -”कान टेंड़ सुन सही सलाह
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यद्यपि एमन तर्क ला राखिन, लेकिन चलन पैस नइ टेक।
लेखक लइक तोर नइ थोथना, दरपन देख लगा ले थाह।
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मेहरुकिहिस -”लेख मं देथव – जम्मों झन ला सम अधिकार
सांगर मोंगर अड़िल युवक हस, गांव लहुट के नांगर जोंत
+
लेखक संघ मं भेद रखत हव, हमला खेदत हव चेचकार।
काम असादी के बदला मं, श्रम करके झड़ गांकर रोंठ।”
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गांव के अन्न शहर मं जाथय, शहर गांव ला देत समान
हंसिस कार्यक्रम अधिधाशी हा, पर मंय मानेव कहां खराब!
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उसने शहराती देहाती, आपुस मं बांटंय पद मान।”
गोड़ तरी मोंगरा खुतलाथय, तब ले ओहर देत सुगंध।
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एकर बाद खाय बर बइठिन, बंटिस उहां पर खाद्य पदार्थ
मंय बोलेंव – “नम्र बोलत हंव, पर तुम उल्टा मारत लात
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एमां सब ला मिलिस बरोबर, होइस पूर्ण सबो के स्वार्थ।
मंहू आदमी आंव तुम्हर अस, पाप करे नइ रहि देहात।
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बहल हंसत मेहरुला बोलिस – “लेखक संघ के बैठक होय
बिगर पलोंदी बेल बढ़य नइ, ना बिन खम्हिया उपर मचान
+
हमर पुकार भले झन होवय, लेकिन पहुंच जबो हम दोंय।”
धर आसरा इहां आए हंव, पर खिसिया के बेधत बान।
+
मेहरुखुलखुल हांसत बोलिस – “मिलिस खाय बर स्वादिल चीज
कवि उमेंदसिंग बसय करेला, जेन लड़िस गोरा मन साथ
+
तेकर लालच तोला धरलिस, तब आबे का बिगर बलाय?”
जन जागृति मं जीवन अर्पित, ओकर नाम कहां हे आज?
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“हम्मन हा यदि सरलग आबो, लेखक संघ हा करिहय पूछ
जयशंकर प्रेमचंद निराला, इंकर अमर अंतिम तक नाम
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खूब अंटा के डोरी बनथय, अलग अलग जे नरियर बूच।”
पर उमेंद ला कोन हा जानत, ओकर रचना गिस यम धाम।
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एकर बाद रात करिया गिस, तंहने होइस नाटक एक
छिदिर बिदिर होगे सब रचना, एकोझन नइ रखिन सम्हाल
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“दयामृत्यु’ नाटक के नामे, लेखक ए सुरेश सर्वेद।
ओकर पुस्तक छप नइ पाइस, तब का जानंय बाल गोपाल!”
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मोर कथा ला साहब सुन लिस, भड़क गीस आंखी कर लाल –
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“तोर असन कतरो लेखक ला, मंय हा रखत दाब के कांख।
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हगरुपदरुलेखक बनथव, कोन कमाहय बरसा धाम
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गांव लहुट के काम बजा तंय, लेख जाय यमराज के धाम।
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छोड़ लफरही निकल इहां ले भड़कत मोर मइन्ता।
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वरना बुढ़ना ला झर्राहंव, करिहंव तोर हइन्ता।
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साहब ला गिनगिन के पत लिस, पर मंय बायबिरिंग ना क्लान्त
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बिच्छी हा चटपट झड़काथय, मर्थे व्यक्ति रहि जाथय शांत।
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मंय हा उहां ले हट के आएंव – गेंव उबली के पान दुकान
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जहां बात के परिस अभेड़ा, उबली लग गिस सत्य बतान।
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ओहर किहिस – “आय हस हंफरत, लेकिन व्यर्थ जात सब खर्च।
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साहब मन टेंड़ुंवा गोठियाथंय, आंजत आँख व्यंग्य के मिर्च।
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राजबजन्त्री राई दोहाई, अस तस पर देवंय नइ ध्यान
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इंकर साथ परिचय अउ बइठक, बस ओमन पाथंय अस्थान।
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हम्मन इही पास मं रहिथन, जानत साहब मन के पोल
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ओमन चाय पान बर आथंय, आपुस मं गोठियाथंय खोल।”
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ओतकी मं बोलिस ट्रांजिस्टर, सुघर ददरिया झड़के बाद
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दानी के कहना ला सुन लव, जे मनसे के जतका साद।
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कृषक बसुन्दरा मांईलोगन, बंद करव तुम चिर्री गाज
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रचना के नामे ला सुन लव – गांव गंवई के रीति रिवाज।
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उबली जे ठौंका ला बोलिस, ओकर मंय पा लेंव प्रमाण
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दानी के रचना हा स्वीकृत, मंय हा क्रूर शब्द भर पाय।”
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एकर बाद बहल अउ बोलिस – “दानी करथय नगर निवास
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जमों क्षेत्र मं पात सफलता, चढ़े हवय साहित्यकाश।
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लेकिन हम तुम गांव मं रहिथन, ते कारन हम जावत गर्त
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हमर लेख मन बिगर पुछन्ता, हारत हन साहित्यिक शर्त।”
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मेहरुकथय – ठीक बोलत हस, होत शहर साधन सम्पन्न
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टी। वी। रेडियो पत्र प्रकाशन, संघ समीक्षक नाम इनाम।
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उहां के लेखक चर्चित होथय, जुड़त पाठ्य पुस्तक मं नाम
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लेखक श्रेष्ठ कहात उही मन, होत प्रशंसित उंकरेच नाम।
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लेकिन एकर ए मतलब नइ, हम्मन छोड़ देन फट गांव
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कर्म करत हम मांग ला राखन, उहू कर्म हो प्रतिभावान।
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न्यायालय मं जइसन होथय, घुरुवा मन पर आइस कष्ट
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उंकर कथा ला काव्य बनावत, होय असच के टायर भस्ट।
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16:47, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

क्रांति प्रकाशन हवय एक ठन, क्रांति हवय मालिक के नाम
ओहर पत्र मोर तिर भेजिस – तंय हा रचना लिख धुआंधार।
पूर्ण होय तंह भेज पाण्डुलिपि, ओला मंय हा देहंव मान
सबले पूर्व प्रकाशित करिहंव, मंय देवत हंव सत्य जबान।”
अतका बोल किहिस अउ मेहरु-”दीस भरोसा क्रांति हा जेन
पुस्तक मोर प्रकाशित होहय, पर नइ पाय झूठ के वार।”
मेहरुबहल बात ला छेंकिन, अउ “दरबार हाल’ मं गीन
लेखक मन तिर एमन अमरिन, अपन अपन परिचय ला दीन।
उहां मिलापा दानी सन्तू, छन्नू ढेला साथ बिटान
सातो बइसाखू परसादी, हवंय काव्य के गुणी अनेक।
दानी टेस बतावत जेकर रुतबा सब ले ऊंचा।
दूसर लेखक हवंय निहू अस – छरकत पूरा घूंचा।
जहां कार्यक्रम के हल रेंगिस, दानी कथय -”मित्र सुन लेव
आज जगत मं बहुत समस्या, ओकर पर कइ ठक तकलीफ।
तुम्मन बुद्धिमान मनखे अव, देव समस्या ऊपर ध्यान
जेन विषय पर सोच डरे हव, ओला इहां राख दव खोल।”
सन्तू कथय -”रखे बर चाहत – विश्व शांति पर ठोस विचार
बम घातक हथियार बने हें, उंकर होय अब खुंटीउजार।
छोटे राष्ट्र देश बड़का हें, ओमन भुला जांय सब भेद
बड़े पलोंदी दे नान्हे ला, सग भाई अस राखंय प्रेम”
मेहरुकिहिस – “करंव नइ चिकचिक, मगर मोर बस इही सलाह-
“यथा बाग मं फूल बहुत ठक, एक साथ खिल पात पनाह।
इसने साहित्यिक बगिया मं, जमों विधा मन भोगंय राज
पावंय मान पाठ्य पुस्तक मं, शहराती ग्रामीण समाज।”
सातो कथय -”जगत सब बर हे, सब प्राणी हें एक समान
मानव पशु पक्षी अउ कीरा, सब के देह एक ठन जान।
कोई ककरो करय न हत्या, दूतर ला झन बांटय पीर
मानव सबले बुद्धिमान हे, तब दूसर के जान बचाय।”
लेखक मन हा सुन्ता बांधिन, दानी ला अध्यक्ष बनैन
उहां जतिक अस नगरीय लेखक, लेखकसंघ के पद ला पैन।
मेहरु बहल गांव के लेखक, भतबहिरा अस पद नइ पैन
यद्यपि एमन तर्क ला राखिन, लेकिन चलन पैस नइ टेक।
मेहरुकिहिस -”लेख मं देथव – जम्मों झन ला सम अधिकार
लेखक संघ मं भेद रखत हव, हमला खेदत हव चेचकार।
गांव के अन्न शहर मं जाथय, शहर गांव ला देत समान
उसने शहराती देहाती, आपुस मं बांटंय पद मान।”
एकर बाद खाय बर बइठिन, बंटिस उहां पर खाद्य पदार्थ
एमां सब ला मिलिस बरोबर, होइस पूर्ण सबो के स्वार्थ।
बहल हंसत मेहरुला बोलिस – “लेखक संघ के बैठक होय
हमर पुकार भले झन होवय, लेकिन पहुंच जबो हम दोंय।”
मेहरुखुलखुल हांसत बोलिस – “मिलिस खाय बर स्वादिल चीज
तेकर लालच तोला धरलिस, तब आबे का बिगर बलाय?”
“हम्मन हा यदि सरलग आबो, लेखक संघ हा करिहय पूछ
खूब अंटा के डोरी बनथय, अलग अलग जे नरियर बूच।”
एकर बाद रात करिया गिस, तंहने होइस नाटक एक
“दयामृत्यु’ नाटक के नामे, लेखक ए सुरेश सर्वेद।