भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गरीबा / गहुंवारी पांत / पृष्ठ - 6 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नूतन प्रसाद शर्मा |संग्रह=गरीबा /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
कविता ओरखे बर मनखे मन, उजरत खलक बढ़त हे भीड़
 +
जगा ला पहिली हक लाने बर, खमखम जमिन बना के ठौर।
 +
कवि मन जहां मंच पर पहुंचिन, हर्षित होवत ताली पीट
 +
कवि मन हाथ उठावत ऊपर, ओमन व्यक्त करत आभार।
 +
कवि मन के परिचय होइस तंह, बढ़गे आत्मीयता संबंध
 +
अइसे लगत के परिचय जुन्ना, जानत एक दुसर ला खूब।
 +
कविता पाठ शुरूहोवत हे, श्रोता के मुंह चुमचुम शांत
 +
कविता सुनत कान ला टेंड़िया, अंदर मन मं रखत सम्हाल।
 +
जीवनयदु खैरागढ़वासी, साहित्यिक जग मं विख्यात
 +
ओहर गीत ला गावत लय धर, प्रस्तुत करथय ठोस विचार –
  
 +
“पखरा सहि काया मं आगी सही मन मांगत हे जुग मोर।
 +
बेरा के गोड़ बंधाये सनीचर बेरा ला तंय झन अगोर।
 +
चुरुवा ले निथर नइ तो जाहय सबो जइसे दोना ले पातर झोर।
 +
अंगना ले निकल तंय हा आबे ते आहय मोहाटी के आगू मं खोर।
 +
 +
रक्सिन रथिया करियावय झन
 +
तोर सुरुज ला छरियावय झन
 +
पांचो अंगरी ला छांट के चल
 +
खोचका डिपरा ला पाट के चल
 +
तब हम सकबो जदुहा रक्सा मन के सब फांदा ला टोर।
 +
 +
बिन गोड़ मुंहू के सिकारी हवे
 +
सब जोंख के इही चिन्हारी हवे
 +
रसदा मं परे हवे घात लगा
 +
कोकड़ा सहि बइठे हे दिही दगा
 +
तंय चीन्ह चिन्हारी ला झन बिसरा गठिया लेबे पागा के छोर।
 +
तोर हे कुरिया कुरिया काबर
 +
कोनो मोठ हवे तोर ले आगर
 +
होगे धोती हा तोर लिंगोटी काबर
 +
होगे चांउर तोर जी गोंटी काबर
 +
येला सोच बता कतका दिन खाबे तंय हा कनकी ला अल्होर।
 +
 +
आगी सिपचा आगी बरही
 +
तोर हाथ भुंजाही बंहा जरही
 +
अपनेच मरे ले सरग दिखथे
 +
बेरा बिदवान कथा लिखथे
 +
टपके नहीं कोनो अगास ले जी कोनो आवय नहीं भुंइया फोर।
 +
 +
तोर मुंहू मं हवय भाखा बोली
 +
दुखुवा के हवे जी इही गोली
 +
झन बाप हा बेटा के घाती बने
 +
अतका पथरा तोर छाती बने
 +
हुंड़रा के मुंह झन जावन पाये जी गाय के पाछू कलोर।
 +
 +
संग संगी केहे गंज आस मोला
 +
तोला भूख तपे अउ पियास मोला
 +
फेर काबर भीतर तंय हा हवस
 +
लागे मोला तो बयरासू अस
 +
धकियाबो चलो भुतहा खण्डहर बनके हम आंधी झकोर।
 +
पखरा सहि काया मं आगी सही मन मांगत हे जुग मोर।
 +
 +
भीखमबैष्णव श्रृंगारिक कवि, जउन करत खैरागढ़ वास
 +
मन मोहे बर गीत ला गावत, निज आवाज बना के मीठ-
 +
“मोर सोन चिरैया – आंखी मं बसैया, मन ले बिसरे न।
 +
उदुक फुदुक के बैरी मैना, इहां उहां उड़ जाथय
 +
गुरतुर भाखा बोले पैरी, सब के मन ला भाथय
 +
बोली अइसन मीठ लागे, जस मंदरस घोरे रे।
 +
कान मं अइरिन पहिरे बैरिन, मटके धर के गगरी
 +
थिरा थिरा के पांव ला धरथय, नदिया अड़बड़ गहिरी
 +
कहूं बिछलगे पांव, तंय हा गिर तो परबे न।
 +
चूंदी कारी – झुंझकुर बारी, बादर अस भरमाथे
 +
खोंचे कनिहा हरियर लुगरा, सुआ ददरिया गाथे।
 +
मुचुक हंसाई देखे, मन के परेवा उड़गे न।
 +
मोर सोन चिरैया आंखी मं बसैया, मन ले बिसरे न।
 +
कवि गोपाल भण्डारपुर बसथय, सच मं ग्रामीण साहित्यकार
 +
एकर रचना स्तर ऊंचा, पाठ करत हे धर के राग-
 +
काकर करा हम जान कोन ला गा हम गोहरान?
 +
ए डहर ओ डहर सबो डहर भैंसा अंधियार
 +
जान डरिन सुन डरिन कोनो नइ कहय दीया ला बार
 +
हुरहा अभर जाबे तब डोमी मारे हवय फुसकार
 +
ढोंढ़िया असोढ़िया मुढ़ेरी सब के इही हे विचार
 +
एमन सबे बदे फूल मितान।
 +
तब काकर करा हम्मन जान।
 +
खुर्सी मं बइठे बर एमन सबे किरिया ला खाइन
 +
राम सरी हम राज चलाबो कहिके गा उभराइन
 +
हुरहा खुरसी मं एहर बइठिस आगे एला उंघासी
 +
उंघात उंघास खटिया पाइस सुतगे गा ए छैमासी
 +
एकर खटिया मं छुटगे परान।
 +
तब काकर करा हम्मन जान।
 +
सियान जान के पीढ़ा देन हमला उही पीढ़ा मं मारिस
 +
दोंहदोंह ले अपन पेंट भरे बर ठंडका हमला ठगदिस
 +
सियान जान के कुकरी पोइलिस नीयत एकर छूटिच गे
 +
हुरहा एला मिठाइस संगी आंखी एकर फूटिच गे
 +
गोपाल एमन हवंय बइमान।
 +
तब काकर करा हम्मन जान।
 
</poem>
 
</poem>

14:29, 9 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

कविता ओरखे बर मनखे मन, उजरत खलक बढ़त हे भीड़
जगा ला पहिली हक लाने बर, खमखम जमिन बना के ठौर।
कवि मन जहां मंच पर पहुंचिन, हर्षित होवत ताली पीट
कवि मन हाथ उठावत ऊपर, ओमन व्यक्त करत आभार।
कवि मन के परिचय होइस तंह, बढ़गे आत्मीयता संबंध
अइसे लगत के परिचय जुन्ना, जानत एक दुसर ला खूब।
कविता पाठ शुरूहोवत हे, श्रोता के मुंह चुमचुम शांत
कविता सुनत कान ला टेंड़िया, अंदर मन मं रखत सम्हाल।
जीवनयदु खैरागढ़वासी, साहित्यिक जग मं विख्यात
ओहर गीत ला गावत लय धर, प्रस्तुत करथय ठोस विचार –

“पखरा सहि काया मं आगी सही मन मांगत हे जुग मोर।
बेरा के गोड़ बंधाये सनीचर बेरा ला तंय झन अगोर।
चुरुवा ले निथर नइ तो जाहय सबो जइसे दोना ले पातर झोर।
अंगना ले निकल तंय हा आबे ते आहय मोहाटी के आगू मं खोर।

रक्सिन रथिया करियावय झन
तोर सुरुज ला छरियावय झन
पांचो अंगरी ला छांट के चल
खोचका डिपरा ला पाट के चल
तब हम सकबो जदुहा रक्सा मन के सब फांदा ला टोर।

बिन गोड़ मुंहू के सिकारी हवे
सब जोंख के इही चिन्हारी हवे
रसदा मं परे हवे घात लगा
कोकड़ा सहि बइठे हे दिही दगा
तंय चीन्ह चिन्हारी ला झन बिसरा गठिया लेबे पागा के छोर।
तोर हे कुरिया कुरिया काबर
कोनो मोठ हवे तोर ले आगर
होगे धोती हा तोर लिंगोटी काबर
होगे चांउर तोर जी गोंटी काबर
येला सोच बता कतका दिन खाबे तंय हा कनकी ला अल्होर।

आगी सिपचा आगी बरही
तोर हाथ भुंजाही बंहा जरही
अपनेच मरे ले सरग दिखथे
बेरा बिदवान कथा लिखथे
टपके नहीं कोनो अगास ले जी कोनो आवय नहीं भुंइया फोर।

तोर मुंहू मं हवय भाखा बोली
दुखुवा के हवे जी इही गोली
झन बाप हा बेटा के घाती बने
अतका पथरा तोर छाती बने
हुंड़रा के मुंह झन जावन पाये जी गाय के पाछू कलोर।

संग संगी केहे गंज आस मोला
तोला भूख तपे अउ पियास मोला
फेर काबर भीतर तंय हा हवस
लागे मोला तो बयरासू अस
धकियाबो चलो भुतहा खण्डहर बनके हम आंधी झकोर।
पखरा सहि काया मं आगी सही मन मांगत हे जुग मोर।

भीखमबैष्णव श्रृंगारिक कवि, जउन करत खैरागढ़ वास
मन मोहे बर गीत ला गावत, निज आवाज बना के मीठ-
“मोर सोन चिरैया – आंखी मं बसैया, मन ले बिसरे न।
उदुक फुदुक के बैरी मैना, इहां उहां उड़ जाथय
गुरतुर भाखा बोले पैरी, सब के मन ला भाथय
बोली अइसन मीठ लागे, जस मंदरस घोरे रे।
कान मं अइरिन पहिरे बैरिन, मटके धर के गगरी
थिरा थिरा के पांव ला धरथय, नदिया अड़बड़ गहिरी
कहूं बिछलगे पांव, तंय हा गिर तो परबे न।
चूंदी कारी – झुंझकुर बारी, बादर अस भरमाथे
खोंचे कनिहा हरियर लुगरा, सुआ ददरिया गाथे।
मुचुक हंसाई देखे, मन के परेवा उड़गे न।
मोर सोन चिरैया आंखी मं बसैया, मन ले बिसरे न।
कवि गोपाल भण्डारपुर बसथय, सच मं ग्रामीण साहित्यकार
एकर रचना स्तर ऊंचा, पाठ करत हे धर के राग-
काकर करा हम जान कोन ला गा हम गोहरान?
ए डहर ओ डहर सबो डहर भैंसा अंधियार
जान डरिन सुन डरिन कोनो नइ कहय दीया ला बार
हुरहा अभर जाबे तब डोमी मारे हवय फुसकार
ढोंढ़िया असोढ़िया मुढ़ेरी सब के इही हे विचार
एमन सबे बदे फूल मितान।
तब काकर करा हम्मन जान।
खुर्सी मं बइठे बर एमन सबे किरिया ला खाइन
राम सरी हम राज चलाबो कहिके गा उभराइन
हुरहा खुरसी मं एहर बइठिस आगे एला उंघासी
उंघात उंघास खटिया पाइस सुतगे गा ए छैमासी
एकर खटिया मं छुटगे परान।
तब काकर करा हम्मन जान।
सियान जान के पीढ़ा देन हमला उही पीढ़ा मं मारिस
दोंहदोंह ले अपन पेंट भरे बर ठंडका हमला ठगदिस
सियान जान के कुकरी पोइलिस नीयत एकर छूटिच गे
हुरहा एला मिठाइस संगी आंखी एकर फूटिच गे
गोपाल एमन हवंय बइमान।
तब काकर करा हम्मन जान।