भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नष्ट झिनकरा संगी, रुखराई वन बन
::::जीवजन्तु कलपत, सुनले सुन ले पुकार रे।
प्राण इही जान इही, सुद्ध हवा देत इही
::::झिन काट रुखराई, अउ आमाडार रे।