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"सच का मंज़र / योगेंद्र कृष्णा" के अवतरणों में अंतर

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तुम्हारी आवाज इतनी
दबी-दबी सी क्यूं है
तुम्हारा चेहरा इतना
बुझा-बुझा सा क्यों है

दिन इतना अंधेरा
और रात इतनी
धूप में जैसे
खिली-खिली सी क्यों है

सच का मंजर
कालिख से इतना
पुता-पुता सा क्यों है...