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"एक आरज़ू / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर

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दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या-रब
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क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
क्या लुत्फ़<ref>मज़ा</ref> अंजुमन<ref>सभा</ref> का जब दिल ही बुझ गया हो
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शोरिश से भागता हूँ दिल ढूँडता है मेरा
 
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ऐसा सुकूत जिस पर तक़रीर भी फ़िदा हो
शोरिश<ref>हंगामा</ref> से भागता हूँ दिल ढूँढता है मेरा
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मरता हूँ ख़ामुशी पर ये आरज़ू है मेरी
ऐसा सुकून<ref>चैन</ref> जिसपर तक़दीर<ref>भाग्य</ref> भी फ़िदा<ref>कृपालु</ref> हो
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दामन में कोह के इक छोटा सा झोंपड़ा हो
 
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आज़ाद फ़िक्र से हूँ उज़्लत में दिन गुज़ारूँ
मरता हूँ ख़ामुशी पर यह आरज़ू है मेरी
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दुनिया के ग़म का दिल से काँटा निकल गया हो
दामन में कोह<ref>पहाड़ की गोद में</ref> के इक छोटा-सा झोंपड़ा हो
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लज़्ज़त सरोद की हो चिड़ियों के चहचहों में
 
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चश्मे की शोरिशों में बाजा सा बज रहा हो
हो हाथ का सिरहाना सब्ज़े<ref>हरियाली</ref> का हो बिछौना
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गुल की कली चटक कर पैग़ाम दे किसी का
शरमाए जिससे जल्वत<ref>दृश्य</ref>ख़िलवत<ref>एकांत</ref> में वो अदा हो
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साग़र ज़रा सा गोया मुझ को जहाँ-नुमा हो
 
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हो हाथ का सिरहाना सब्ज़े का हो बिछौना
मानूस<ref>परिचित</ref> इस क़दर हो सूरत से मेरी बुलबुल
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शरमाए जिस से जल्वत ख़ल्वत में वो अदा हो
नन्हे-से उसके दिल में खटका<ref>भय</ref> न कुछ मिरा हो
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मानूस इस क़दर हो सूरत से मेरी बुलबुल
 
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नन्हे से दिल में उस के खटका न कुछ मिरा हो
आग़ोश<ref>अंकपाश में</ref> में ज़मीं की सोया हुआ हो सब्ज़ा<ref>हरियाली</ref>
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सफ़ बाँधे दोनों जानिब बूटे हरे हरे हों
फिर-फिर के झाड़ियों में पानी चमक रहा हो
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नद्दी का साफ़ पानी तस्वीर ले रहा हो
 
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हो दिल-फ़रेब ऐसा कोहसार का नज़ारा
पानी को छू रही हो झुक-झुक के गुल की टहनी
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पानी भी मौज बन कर उठ उठ के देखता हो
जैसे हसीन<ref>सुन्दरी</ref> कोई आईना देखता हो
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आग़ोश में ज़मीं की सोया हुआ हो सब्ज़ा
 
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फिर फिर के झाड़ियों में पानी चमक रहा हो
फूलों को आए जिस दम शबनम<ref>ओस</ref> वज़ू<ref>नमाज़ से पहले हाथ-मुँह,पैर धोना</ref> कराने
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पानी को छू रही हो झुक झुक के गुल की टहनी
रोना मेरा वज़ू हो, नाला<ref>फ़रियाद</ref> मिरी दुआ हो
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जैसे हसीन कोई आईना देखता हो
 
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मेहंदी लगाए सूरज जब शाम की दुल्हन को
हर दर्दमंद दिल को रोना मेरा रुला दे
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सुर्ख़ी लिए सुनहरी हर फूल की क़बा हो
बेहोश जो पड़े हैं, शायद उन्हें‍ रुला दे
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रातों को चलने वाले रह जाएँ थक के जिस दम
 
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उम्मीद उन की मेरा टूटा हुआ दिया हो
 
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बिजली चमक के उन को कुटिया मिरी दिखा दे
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जब आसमाँ पे हर सू बादल घिरा हुआ हो
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पिछले पहर की कोयल वो सुब्ह की मोअज़्ज़िन
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मैं उस का हम-नवा हूँ वो मेरी हम-नवा हो
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कानों पे हो न मेरे दैर ओ हरम का एहसाँ
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रौज़न ही झोंपड़ी का मुझ को सहर-नुमा हो
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फूलों को आए जिस दम शबनम वज़ू कराने
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रोना मिरा वज़ू हो नाला मिरी दुआ हो
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इस ख़ामुशी में जाएँ इतने बुलंद नाले
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तारों के क़ाफ़िले को मेरी सदा दिरा हो
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हर दर्दमंद दिल को रोना मिरा रुला दे
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बेहोश जो पड़े हैं शायद उन्हें जगा दे
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17:56, 8 फ़रवरी 2017 का अवतरण

 
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
शोरिश से भागता हूँ दिल ढूँडता है मेरा
ऐसा सुकूत जिस पर तक़रीर भी फ़िदा हो
मरता हूँ ख़ामुशी पर ये आरज़ू है मेरी
दामन में कोह के इक छोटा सा झोंपड़ा हो
आज़ाद फ़िक्र से हूँ उज़्लत में दिन गुज़ारूँ
दुनिया के ग़म का दिल से काँटा निकल गया हो
लज़्ज़त सरोद की हो चिड़ियों के चहचहों में
चश्मे की शोरिशों में बाजा सा बज रहा हो
गुल की कली चटक कर पैग़ाम दे किसी का
साग़र ज़रा सा गोया मुझ को जहाँ-नुमा हो
हो हाथ का सिरहाना सब्ज़े का हो बिछौना
शरमाए जिस से जल्वत ख़ल्वत में वो अदा हो
मानूस इस क़दर हो सूरत से मेरी बुलबुल
नन्हे से दिल में उस के खटका न कुछ मिरा हो
सफ़ बाँधे दोनों जानिब बूटे हरे हरे हों
नद्दी का साफ़ पानी तस्वीर ले रहा हो
हो दिल-फ़रेब ऐसा कोहसार का नज़ारा
पानी भी मौज बन कर उठ उठ के देखता हो
आग़ोश में ज़मीं की सोया हुआ हो सब्ज़ा
फिर फिर के झाड़ियों में पानी चमक रहा हो
पानी को छू रही हो झुक झुक के गुल की टहनी
जैसे हसीन कोई आईना देखता हो
मेहंदी लगाए सूरज जब शाम की दुल्हन को
सुर्ख़ी लिए सुनहरी हर फूल की क़बा हो
रातों को चलने वाले रह जाएँ थक के जिस दम
उम्मीद उन की मेरा टूटा हुआ दिया हो
बिजली चमक के उन को कुटिया मिरी दिखा दे
जब आसमाँ पे हर सू बादल घिरा हुआ हो
पिछले पहर की कोयल वो सुब्ह की मोअज़्ज़िन
मैं उस का हम-नवा हूँ वो मेरी हम-नवा हो
कानों पे हो न मेरे दैर ओ हरम का एहसाँ
रौज़न ही झोंपड़ी का मुझ को सहर-नुमा हो
फूलों को आए जिस दम शबनम वज़ू कराने
रोना मिरा वज़ू हो नाला मिरी दुआ हो
इस ख़ामुशी में जाएँ इतने बुलंद नाले
तारों के क़ाफ़िले को मेरी सदा दिरा हो
हर दर्दमंद दिल को रोना मिरा रुला दे
बेहोश जो पड़े हैं शायद उन्हें जगा दे