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"जब तेरा हुक्म मिला / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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− | + | तुझ से किस तरह मैं इज़्हार-ए-तमन्ना करता | |
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− | मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले | + | मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले |
− | + | तू ने जा कर तो जुदाई मिरी क़िस्मत कर दी | |
− | + | तुझ को पूजा है कि असनाम-परस्ती की है | |
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+ | पूछ बैठा हूँ मैं तुझ से तिरे कूचे का पता | ||
+ | तेरे हालात ने कैसी तिरी सूरत कर दी | ||
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+ | क्या तिरा जिस्म तिरे हुस्न की हिद्दत में जला | ||
+ | राख किस ने तिरी सोने की सी रंगत कर दी | ||
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19:14, 11 फ़रवरी 2017 का अवतरण
जब तिरा हुक्म मिला तर्क मोहब्बत कर दी
दिल मगर इस पे वो धड़का कि क़यामत कर दी
तुझ से किस तरह मैं इज़्हार-ए-तमन्ना करता
लफ़्ज़ सूझा तो मुआ'नी ने बग़ावत कर दी
मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले
तू ने जा कर तो जुदाई मिरी क़िस्मत कर दी
तुझ को पूजा है कि असनाम-परस्ती की है
मैं ने वहदत के मफ़ाहीम की कसरत कर दी
मुझ को दुश्मन के इरादों पे भी प्यार आता है
तिरी उल्फ़त ने मोहब्बत मिरी आदत कर दी
पूछ बैठा हूँ मैं तुझ से तिरे कूचे का पता
तेरे हालात ने कैसी तिरी सूरत कर दी
क्या तिरा जिस्म तिरे हुस्न की हिद्दत में जला
राख किस ने तिरी सोने की सी रंगत कर दी