"घोड़ा / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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अगर कहीं मैं घोड़ा होता, वह भी लंबा-चौड़ा होता। | अगर कहीं मैं घोड़ा होता, वह भी लंबा-चौड़ा होता। | ||
तुम्हें पीठ पर बैठा करके, बहुत तेज मैं दोड़ा होता।। | तुम्हें पीठ पर बैठा करके, बहुत तेज मैं दोड़ा होता।। | ||
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पलक झपकते ही ले जाता, दूर पहाड़ों की वादी में। | पलक झपकते ही ले जाता, दूर पहाड़ों की वादी में। | ||
बातें करता हुआ हवा से, बियाबान में, आबादी में।। | बातें करता हुआ हवा से, बियाबान में, आबादी में।। | ||
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किसी झोंपड़े के आगे रुक, तुम्हें छाछ औ’ दूध पिलाता। | किसी झोंपड़े के आगे रुक, तुम्हें छाछ औ’ दूध पिलाता। | ||
तरह-तरह के भोले-भाले इनसानों से तुम्हें मिलाता।। | तरह-तरह के भोले-भाले इनसानों से तुम्हें मिलाता।। | ||
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उनके संग जंगलों में जाकर मीठे-मीठे फल खाते। | उनके संग जंगलों में जाकर मीठे-मीठे फल खाते। | ||
रंग-बिरंगी चिड़ियों से अपनी अच्छी पहचान बनाते।। | रंग-बिरंगी चिड़ियों से अपनी अच्छी पहचान बनाते।। | ||
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झाड़ी में दुबके तुमको प्यारे-प्यारे खरगोश दिखाता। | झाड़ी में दुबके तुमको प्यारे-प्यारे खरगोश दिखाता। | ||
और उछलते हुए मेमनों के संग तुमको खेल खिलाता।। | और उछलते हुए मेमनों के संग तुमको खेल खिलाता।। | ||
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रात ढमाढम ढोल, झमाझम झाँझ, नाच-गाने में कटती। | रात ढमाढम ढोल, झमाझम झाँझ, नाच-गाने में कटती। | ||
हरे-भरे जंगल में तुम्हें दिखाता, कैसे मस्ती बँटती।। | हरे-भरे जंगल में तुम्हें दिखाता, कैसे मस्ती बँटती।। | ||
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सुबह नदी में नहा, दिखाता तुमको कैसे सूरज उगता। | सुबह नदी में नहा, दिखाता तुमको कैसे सूरज उगता। | ||
कैसे तीतर दौड़ लगाता, कैसे पिंडुक दाना चुगता।। | कैसे तीतर दौड़ लगाता, कैसे पिंडुक दाना चुगता।। | ||
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बगुले कैसे ध्यान लगाते, मछली शांत डोलती कैसे। | बगुले कैसे ध्यान लगाते, मछली शांत डोलती कैसे। | ||
और टिटहरी आसमान में, चक्कर काट बोलती कैसे।। | और टिटहरी आसमान में, चक्कर काट बोलती कैसे।। | ||
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कैसे आते हिरन झुंड के झुंड नदी में पानी पीते। | कैसे आते हिरन झुंड के झुंड नदी में पानी पीते। | ||
कैसे छोड़ निशान पैर के जाते हैं जंगल में चीते।। | कैसे छोड़ निशान पैर के जाते हैं जंगल में चीते।। | ||
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हम भी वहाँ निशान छोड़कर अपना, फिर वापस आ जाते। | हम भी वहाँ निशान छोड़कर अपना, फिर वापस आ जाते। | ||
शायद कभी खोजते उसको और बहुत-से बच्चे आते।। | शायद कभी खोजते उसको और बहुत-से बच्चे आते।। | ||
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तब मैं अपने पैर पटक, हिन-हिन करता, तुम भी खुश होते। | तब मैं अपने पैर पटक, हिन-हिन करता, तुम भी खुश होते। | ||
‘कितनी नकली दुनिया यह अपनी’ तुम सोते में भी कहते।। | ‘कितनी नकली दुनिया यह अपनी’ तुम सोते में भी कहते।। | ||
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लेकिन अपने मुँह में नहीं लगाम डालने देता तुमको। | लेकिन अपने मुँह में नहीं लगाम डालने देता तुमको। | ||
प्यार उमड़ने पर वैसे छू लेने देता अपनी दुम को।। | प्यार उमड़ने पर वैसे छू लेने देता अपनी दुम को।। | ||
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नहीं दुलत्ती तुम्हें झाड़ता, क्योंकि उसे खाकर तुम रोते। | नहीं दुलत्ती तुम्हें झाड़ता, क्योंकि उसे खाकर तुम रोते। | ||
लेकिन सच तो यह है बच्चो, तब तुम ही मेरी दुम होते।। | लेकिन सच तो यह है बच्चो, तब तुम ही मेरी दुम होते।। | ||
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14:07, 5 मार्च 2017 के समय का अवतरण
अगर कहीं मैं घोड़ा होता, वह भी लंबा-चौड़ा होता।
तुम्हें पीठ पर बैठा करके, बहुत तेज मैं दोड़ा होता।।
पलक झपकते ही ले जाता, दूर पहाड़ों की वादी में।
बातें करता हुआ हवा से, बियाबान में, आबादी में।।
किसी झोंपड़े के आगे रुक, तुम्हें छाछ औ’ दूध पिलाता।
तरह-तरह के भोले-भाले इनसानों से तुम्हें मिलाता।।
उनके संग जंगलों में जाकर मीठे-मीठे फल खाते।
रंग-बिरंगी चिड़ियों से अपनी अच्छी पहचान बनाते।।
झाड़ी में दुबके तुमको प्यारे-प्यारे खरगोश दिखाता।
और उछलते हुए मेमनों के संग तुमको खेल खिलाता।।
रात ढमाढम ढोल, झमाझम झाँझ, नाच-गाने में कटती।
हरे-भरे जंगल में तुम्हें दिखाता, कैसे मस्ती बँटती।।
सुबह नदी में नहा, दिखाता तुमको कैसे सूरज उगता।
कैसे तीतर दौड़ लगाता, कैसे पिंडुक दाना चुगता।।
बगुले कैसे ध्यान लगाते, मछली शांत डोलती कैसे।
और टिटहरी आसमान में, चक्कर काट बोलती कैसे।।
कैसे आते हिरन झुंड के झुंड नदी में पानी पीते।
कैसे छोड़ निशान पैर के जाते हैं जंगल में चीते।।
हम भी वहाँ निशान छोड़कर अपना, फिर वापस आ जाते।
शायद कभी खोजते उसको और बहुत-से बच्चे आते।।
तब मैं अपने पैर पटक, हिन-हिन करता, तुम भी खुश होते।
‘कितनी नकली दुनिया यह अपनी’ तुम सोते में भी कहते।।
लेकिन अपने मुँह में नहीं लगाम डालने देता तुमको।
प्यार उमड़ने पर वैसे छू लेने देता अपनी दुम को।।
नहीं दुलत्ती तुम्हें झाड़ता, क्योंकि उसे खाकर तुम रोते।
लेकिन सच तो यह है बच्चो, तब तुम ही मेरी दुम होते।।