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बम्बई-2 / विजय कुमार

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यह कैसा आकाश था
 
इतनी रात और अंधेरे में
 
अपने साथ
 
कोई स्मृति भी नहीं
 
इस तरह हम
 
छूटते गए अकेले
 
नहीं यह बुख़ार नहीं था
 
हम स्तब्ध पड़े थे
 
ख़ामोश
 
वह हँसी
 
हमारी नहीं थी
 
छाती से निकलती हुई
 
खोखली हो...हो...
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