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"उम्मीद की फाँक / कुमार कृष्ण" के अवतरणों में अंतर

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डूब रहा था जो-
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मनुष्यों की भीड़ के सामने।
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22:18, 8 मार्च 2017 के समय का अवतरण

बह रही थी नदी की बाढ़ में-
एक हिम्मत
डूब रहा था उसमें-
एक हौसला
डूब रही थीं आस्थाएँ
डूब रही थी विश्वास की
एक पुरानी इमारत
देख रहे थे पूरा मंज़र
अनगिनत लोग
किनारे पर खड़े होकर
मेरे दायीं ओर खड़े आदमी ने कहा-
'बहुत बूढ़ा है डूब भी जाए तो क्या फ़र्क़ पड़ेगा
थोड़ा कम ही होगा धरती पर बोझ'
जान पर खेलते हुए
बायीं ओर खड़े एक नौजवान लड़के ने
लगा दी नदी में छलाँग
वह ले आया अपने कन्धों पर उठाकर
एक बूढ़ा आदमी
डूब रहा था जो-
मनुष्यों की भीड़ के सामने।