भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कोई बड़ी बात / तरुण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर खंडेलवाल 'तरुण' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:06, 20 मार्च 2017 के समय का अवतरण

एक में से एक निकलते
बालू रेत के बादामी टीबे-ही-टीबे, टीबे-ही-टीबे;
मरुस्थलीय शून्य निर्जन भुरभुरा एकान्त!
कीकर, खेजड़ा, जाँठ के कँटीले पेड़ों-
झाड़ी-झुरमुटों में
पखेरू उड़ रहे हैं-कुल, कुल, कुल, कुल,
करते काँ-काँ-काँ-
पीछे, साँझ का अनमना सूरज
पानी की लहरों में डूबती-उतराती थाली-सा
ढल रहा है-

ध्यानमग्न, अन्तर्मुख, चोट-खाया;
जीवन के चतुर्दिक् से होकर बहरा
जैसे-कभी सत्तारूढ़ रहे
किसी अब अपदस्थ का
लुढ़कता-सा अनुभूतियों-भरा नीरव चेहरा।
जो जीवन-यात्रांत में, बस पल-दो-पल
सीख की कोई गहरी बात मानो
संसार को कहने को ठहरा!
साँस निकलने से पहले!

1990