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"मिलन / कर्मानंद आर्य" के अवतरणों में अंतर
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− | + | उसे उतारता नहीं हूँ | |
− | + | तुमसे प्यार है तो तुम्हारी धूल भी पसंद है मुझे | |
− | + | यानी प्यार में सुखी होने के लिए | |
− | + | वह सब करता हूँ जो पसंद भी नहीं | |
− | + | पुरुष का अहंकार नहीं | |
− | + | यह प्यार है | |
− | + | जिसमें बन जाना होता है छोटा | |
− | + | झुक जाना होता है जमीन तक | |
− | और | + | चलना होता है लंगड़ाकर |
− | + | गिरकर, और गिरना होता है | |
− | + | यह प्यार ही है | |
− | + | झुकता हूँ, चलता हूँ, दौड़ता, हांफता हूँ | |
− | + | फिर गिर पड़ता हूँ | |
− | + | गिरकर होता हूँ सुखी | |
− | + | इसी क्रम में चढ़ती है धूल, थकती हैं साँसें | |
− | + | कोई पड़ाव नहीं आता | |
− | + | प्यार के लिए | |
− | + | जाने कितने बरस, जाने कितनी सदियाँ | |
− | + | बीत चुकी हैं | |
− | + | दौड़ रहा हूँ, भाग रहा हूँ | |
+ | मिलन की चाह है | ||
+ | अभी तक आधा अधूरा है मिलन | ||
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11:07, 30 मार्च 2017 के समय का अवतरण
पैरों की धूल चढ़कर बैठ जाती है माथे पर
उसे उतारता नहीं हूँ
तुमसे प्यार है तो तुम्हारी धूल भी पसंद है मुझे
यानी प्यार में सुखी होने के लिए
वह सब करता हूँ जो पसंद भी नहीं
पुरुष का अहंकार नहीं
यह प्यार है
जिसमें बन जाना होता है छोटा
झुक जाना होता है जमीन तक
चलना होता है लंगड़ाकर
गिरकर, और गिरना होता है
यह प्यार ही है
झुकता हूँ, चलता हूँ, दौड़ता, हांफता हूँ
फिर गिर पड़ता हूँ
गिरकर होता हूँ सुखी
इसी क्रम में चढ़ती है धूल, थकती हैं साँसें
कोई पड़ाव नहीं आता
प्यार के लिए
जाने कितने बरस, जाने कितनी सदियाँ
बीत चुकी हैं
दौड़ रहा हूँ, भाग रहा हूँ
मिलन की चाह है
अभी तक आधा अधूरा है मिलन