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"उड़कर फिर अतीत में जायें / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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11:11, 20 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण

उड़कर फिर अतीत में जायें
भूलें जो की हैं जीवन में, आओ, उन्हें गिनायें
 
पहली भूल, मिले थे क्यों हम
बदल गया कुल जीवन का क्रम
भूल दूसरी क्यों पाला भ्रम--
'प्यार न मुँह पर लायें'
 
भूल तीसरी, थी जब होली
क्यों न मली आपस में रोली
पल भी मन की गाँठ न खोली
फैला तृषित भुजायें
 
चौथी भूल, न सुख से सोये
क्यों फिर उन सपनों में खोये
सारी रात इसीको रोये--
'फिर से वे दिन आयें'
उड़कर फिर अतीत में जाएँ
भूलें जो की हैं जीवन में, आओ, उन्हें गिनायें