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"ट्विटर कविताएँ / मंगलमूर्ति" के अवतरणों में अंतर

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मैं हारा नहीं हूँ
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थक गया हूँ
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यह गहरी थकावट
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मुझे हराना चाहती है
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पर मैं हारूँगा नहीं
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हारेगी मेरी थकावट
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क्योंकि मैं कभी हारा नहीं
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और न हारूँगा
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घड़ी पहनता हूँ
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पर देखता हूँ कम
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क्योंकि वक्त तो यों भी
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सवार रहता है
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बैताल की तरह पीठ पर
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और धड़कता रहता है
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दिल में घड़ी की ही तरह
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धक-धक-धक-धक!
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सूरज डूबा
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या मैं डूबा
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अंधकार में
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सूरज तो उबरेगा
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नये प्रकाश में
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डूबेगी धरती
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नाचती निज धुरी पर
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मुझको लिए-दिए
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गहरे व्योम में ढूंढती
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उस सूरज को
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बिंदी
 
बिंदी

19:44, 27 अप्रैल 2017 के समय का अवतरण

    १.
मैं हारा नहीं हूँ
थक गया हूँ
यह गहरी थकावट
मुझे हराना चाहती है
पर मैं हारूँगा नहीं
हारेगी मेरी थकावट
क्योंकि मैं कभी हारा नहीं
और न हारूँगा

     २.
घड़ी पहनता हूँ
पर देखता हूँ कम
क्योंकि वक्त तो यों भी
सवार रहता है
बैताल की तरह पीठ पर
और धड़कता रहता है
दिल में घड़ी की ही तरह
धक-धक-धक-धक!

    ३.
सूरज डूबा
या मैं डूबा
अंधकार में
सूरज तो उबरेगा
नये प्रकाश में
डूबेगी धरती
नाचती निज धुरी पर
मुझको लिए-दिए
गहरे व्योम में ढूंढती
उस सूरज को

४.
बिंदी
चमक रही है
गोरे माथे पर तुम्हारी
 
बिंदी

तुम्हारी उलझी
लटों की ओट से
कह रही हो जैसे
होंठ दाँतों से दबाये -
नहीं समझोगे तुम कभी
मेरे मन की बात !

     ५.
कविता एक तितली सी
उड़ती आती और बैठ जाती है
मेरे माथे पर सिहरन जगाती
किसी कोंपल को चूमती
पंख फड़फड़ाती
गाती कोई अनसुना गीत
और उड़ जाती अचानक


      ६.

ज़ू में बैठा हूँ मैं

लोग तो जानवरों को
देख रहे हैं

मैं उन लोगों को
देख रहा हूँ

और कुछ लोग
आते-जाते
हैरत-भरी नज़रों से

मुझको भी
देख लेते हैं

    ७.

मैं एक खंडहर हूँ
कब्रगाह के बगल में

मेरे अहाते में
जो एक दरख़्त है
ठूंठ शाखों वाला

उस पर अक्सर
क्यों आकर बैठती है
सोच मे डूबी
एक काली चील?